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सफल होने के लिए ये तीन सूत्र याद रखना बेहद जरूरी है

दूसरे आपको पसंद करें इसकी तैयारी आपको ही करनी होगी। यदि आप बहुत अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं, अनुभवी भी नहीं हैं तो आपको कोई क्यों पसंद करेगा। किसी सिस्टम में आपसे अधिक एजुकेटेड, टैलेंटेड लोग हों तो आप पीछे रह जाएंगे। अतिरिक्त परिश्रम आज के समय में वह पूंजी है जिससे आप सफलता का ताला खोल सकते हैं। हर बॉस आपकी इस योग्यता का कायल होगा। उसे भरोसा रहेगा कि भले ही आपके पास ऊंची शिक्षा नहीं है, लेकिन अतिरिक्त परिश्रम आपकी खूबी है। अतिरिक्त परिश्रम का मतलब जरूरत से ज्यादा काम करना नहीं होता।
 
इसका अर्थ है कि जो काम किया जाए जमकर किया जाए। काम में पूरी तरह डूब जाएं। अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त ऊर्जा चाहिए। चलिए, अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक आध्यात्मिक प्रयोग करते हैं। प्रतिदिन थोड़ी देर के लिए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएं, पैरों को चौड़ा करें। हो सके तो थोड़ा कूद लें, फिर सामान्य हो जाएं। कुछ ऐसी एक्सरसाइज करें जैसे तेज हवा चलने पर पेड़ हिल रहा है। अपने शरीर को सुविधानुसार हिला-डुला लें और फिर खामोशी से खड़े हो जाएं। मन ही मन कल्पना करें कि हम एक पेड़ बन गए। हमारी जड़ें पृथ्वी में समाई हैं और हम पृथ्वी से ऊर्जा अपने भीतर ले रहे हैं। जैसे धरती वृक्ष को देती है। फल वृक्ष का दिया कम और धरती का दिया ज्यादा होता है। हम ऐसा ही महसूस करें कि हमें पृथ्वी से कुछ मिल रहा है और यही हमारी अतिरिक्त ऊर्जा होगी।
सफल होने के खुशी तभी है जब साथ हो ये खास चीज
सभी लोग सफलता चाहते हैं। आजकल हम बच्चों को पहली सांस से ही सफलता की लोरियां सुनाना शुरू कर देते हैं। मुझसे पिछले दिनों प्राइमरी कक्षा में पढ़ रहे कुछ बच्चों ने प्रश्न पूछा कि सफलता का मतलब क्या होता है। एक क्षण के लिए तो मैं भी चौंक गया कि इस बाल उम्र में इन्हें सफलता का क्या अर्थ बताया जाए। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में कुछ जगह सफलता के मतलब समझाए थे। यदि हम उनका निचोड़ निकालें तो सफलता के तीन अर्थ हैं। पहला जीतना, दूसरा आजादी और तीसरा संरक्षण। आपकी सफलता ऐसी होनी चाहिए कि आपको लगे कि आप जीते हुए हैं, क्योंकि कई बार जीत के नीचे हार होती है।

जीतने वाला भीतर-भीतर जानता है कि मैं हार गया हूं। यह पूरी सफलता नहीं है। दूसरी बात है, सफलता के बाद हमें आजादी महसूस होनी चाहिए । कहीं बंधे हुए नहीं हैं। लोग पद, प्रतिष्ठा, धन से भी बंध जाते हैं। गुलामी कैसी भी हो अशांति लाती है। सफलता का तीसरा अर्थ है संरक्षण। हम स्वयं को सुरक्षित महसूस करें, निर्भय हों और हमारे संपर्क में रहने वाले लोग भी हमारे सान्निध्य में स्वयं को संरक्षित मानें। ये तीन बातें हों, तब हम सफल माने जाएंगे। सफलता के लिए जो भी तरीके आप अपनाएं एक सूत्र सब पर समान रूप से लागू होगा और वह है अपनी पूरी ताकत लगाकर कर्म  करें। कुछ भी बचाकर न रखें। एक नैतिक उत्तेजना अपने भीतर लगातार बनाए रखें। एक गहरी प्यास जब तक नहीं जागेगी, कर्म के परिणाम में सफलता हाथ नहीं आएगी।
बेहतरीन सफलता के लिए ये बातें जरूरी हैं व्यक्तित्व में

इंसानों में जितने भेद होते हैं उनमें एक बड़ा भेद रुचि का होता है। अभिन्न मित्रों में भी भिन्न रुचियां पाई जाती हैं। एक ही माता-पिता की संतानों की रुचियां अलग-अलग होती हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हमारा उस व्यक्ति-परिस्थिति से तालमेल हो जाना ही रुचि है। बेहतर तालमेल ही रुचि में बदल जाता है।

जिस काम में हमें रुचि होती है उसे हम अच्छे ढंग से करते हैं, लेकिन यह भी सही है कि किसी काम को लगातार करते रहें तो उसमें रुचि जाग जाती है। रुचि है बहुत महत्वपूर्ण तत्व। जब आप किसी बड़े अभियान में जुटे हुए हों; कहीं नौकरी कर रहे हों या स्वयं का व्यवसाय हो। देखिए, रुचि कैसे काम आती है। हमारे भीतर की नैतिकता लगन जगाती है और हम पूरी लगन से इसी काम में जुट जाते हैं, परंतु केवल लगन से काम नहीं चलता। 

उत्साह यदि न हो, तो लगन भी हांफने लगती है। यदि उत्साह जुड़ जाए तो सफलता मिलनी ही है। लगन में उत्साह जोडऩे के लिए उन कामों में रुचि लें, जिन्हें हम न जानते हों। हमारी जितनी कम जानकारी हो, उतनी ही अधिक रुचि बढ़ा दें। जैसे किसी खेल को हमने कभी न खेला हो तो उसकी जानकारी निकालना शुरू करें।जिस कला से कभी हमारा संबंध न रहा हो उसके बारे में थोड़ी खोजबीन करें। जिस साहित्य से हम कभी न गुजरे हों उसके अध्ययन से अपनी रुचि को जोड़ दें। यह जो अतिरिक्त रुचि का कार्य होगा वह हमारे लगन में उत्साह भर देगा। इस मनोवैज्ञानिक प्रयोग को करने में कोई नुकसान नहीं है।

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