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Showing posts from November 25, 2014

रिनझाई,

रिनझाई, कोरिया देश के माने हुये सन्त थे। उनके निकट रहकर अनेकों ने सिद्धियाँ पाई थीं। एक धनी व्यक्ति आया और कहा- मुझे बहुत व्यस्तता है, जल्दी सिद्धियाँ मिले, ऐसा उपाय बता दीजिए। रिनझाई ने कहा- बस मात्र तीस वर्ष लगेगा। इतने समय ठहरना पड़ेगा आश्चर्यचकित होकर उसने पूछा भला इतना समय किसलिए? उत्तर मिला- गलती हो गयी- तुम्हें साठ वर्ष ठहरना पड़ेगा। उतावली दूर करने के तीस वर्ष और सन्देह हटाने के लिए तीस वर्ष। उस बार व्यक्ति वापस लौट गया। पर घर जाकर विचार करने लगा। इतने बड़े लाभ के लिए  यदि सारी जिन्दगी भी लग जाय तो क्या हर्ज है। वह वापस लौट आया और साठ वर्ष साधना करने के लिए तैयार हो गया। तीन वर्ष पूरे हो पाये थे कि साधना पूरी हुई और सिद्धि मिल गयी। इतनी देर में होने वाला काम इतनी जल्दी कैसे हो गया, इस शंका का समाधान करते हुये रिनझाई ने कहा- उतावली और असमंजस यह दो ही साधना मार्ग के दो बड़े विघ्न हैं, यदि धैर्य और विश्वास जम सके तो आत्मिक प्रगति में देर नहीं लगती।

मार्मिक कहानी कहानी एक गलती की :-

एक बार कुछ विद्यार्थी रसायन विज्ञानं प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग कर रहे थे. सभी विद्यार्थी अपने अपने प्रयोगों में व्यस्त थे कि अचानक एक लड़के की परखनली से तेज बुलबुला उठा और उसकी छिट्कियाँ सामने प्रयोग कर रही लड़की की आँखों में चला गया. पूरी प्रयोगशाला में हाहाकार मच गया, सभी खूब परेशांन हुए, आनन फानन में उस लड़की को अस्पताल पहुँचाया गया, वहाँ डाक्टरों ने बताया कि वो अपनी आँखें खो चुकी है. ये सुन कर उस लड़की के घर वालों ने उस लड़के को कोसना शुर ू कर दिया और स्कूल वालों ने उस लड़के को स्कूल से निकाल दिया. अब वो अंधी लड़की अपनी नीरस ज़िन्दगी बिता रही थी, जो शायद किसी की लापरवाही की वजह से वीरान सी हो गयी थी, अब उस लड़की की ज़िन्दगी में कोई भी रंग कोई मायने नहीं रखता था. घर वाले भी वक़्त बेवक्त उस लड़के को कोसते रहते थे जिसने उनकी लड़की की ज़िन्दगी खराब कर दी थी. आज कल के ज़माने में तो किसी के सामने हूर परी भी बैठा दो तो भी लड़के वालों को उससे भी ज्यादा खूबसूरत चाहिए होती है. फिर उस बिचारी की वीरान ज़िन्दगी में रंग भरने की बात सोच पाना भी असंभव सा था. खैर वक़्त बीतता गया और उस लड़की को उस ...

हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनकर चहचहा सके

मैं गाय की पूजा करता हूँ | यदि समस्त संसार इसकी पूजा का विरोध करे तो भी मैं गाय को पुजूंगा-गाय जन्म देने वाली माँ से भी बड़ी है | हमारा मानना है की वह लाखों व्यक्तियों की माँ है “ - महात्मा गाँधी  गौ मे ३३ करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है , अतः गौ हमारे लिए पूजनीय है परन्तु क्या इन धार्मिक मान्यता के आधार पर भी आज ही़नदुस्तान में गौ को उसका समुचित स्थान मिल पाया है ? नहीं |  अतः समय है आज के (तथाकथित ) वैज्ञानिक एवं व्याप ारिक युग में गौ की उपयोगिता के उस पहलु पर भी विचार किया जाये तब शायद उसके ये मानस-पुत्र स्वर्थावास ही सही परन्तु उसकी हत्या करने के पाप से बच तो जायेंगे | संपूर्ण जीवधारियो में गौ का एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है | यह स्थान ज्ञान और विज्ञान सम्मत है , ज्ञान और विज्ञान के पश्चात आध्यात्म तो उपस्थित हो ही जाता है | इस प्रकार ज्ञान , विज्ञान और आध्यात्म – इन तीन की बराबर रेखाओ के सम्मिलन से जो त्रिभुज बनता है ,उसे गाय कहते है | विद्वानों ने गाय को साक्षात् पृथ्वी-स्वरूपा बतलाया है| इस जगत के भार को जो समेटे हुए है और जगत के संपूर्ण गुणों की जो खान है उसका नाम ...
महाभारत हो गया था एक नारी के अपमान पर, तो रामजी बनवास चले गये थे अपने पिता के सम्मान पर कैसे विचार पल रहे है आज की पीढी में गन्दे विचार और आग रहती है जुबान पर कोई क्यों आज बेटी का सम्मान नही करता बेटी होने पर क्यों कोई अभिमान नही करता नारी का हर रुप सम्मान का हकदार है। फिर इसका असर क्यों नही होता इन्सान पर अभी वक्त है बचा लो इस धरती को, बेटी,बहन, पत्नी और माँ की संस्कृति को जमीं नही बची तो कुलदीपक कहाँ मिलेगा अच्छी सोच सोचो, गर्व करो बेटी के स्वाभिमान पर....

अगर शोले संस्कृत में होती तो..

१.......बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना || हे बसन्ति एतेषां श्वानानाम् पुरत: मा नृत्य|| २.......अरे ओ सांबा, कितना इनाम रखे हैं सरकार हम पर? ||हे साम्बा, सर्वकारेण कति पारितोषिकानि अस्माकं कृते उद्घोषितानि? ३.......चल धन्नो आज तेरी बसंती की इज्जत का सवाल है ||धन्नो, (चलतु वा) धावतु अद्य तव बसन्त्य: लज्जाया: प्रश्न: अस्ति | ४.......जो डर गया समझो मर गया || य भीत:भवेत् स:मृत:एव मन्य || ५.......आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ और बाकी हमारे पीछे आओ || केचन पुरुषा:अत्र गच्छन्तु केचन पुरुषा: तत्र गच्छन्तु शेषा:पुरुषा:मया सह आगच्छतु|| ६......सरदार, मैने आपका नमक खाया है ||हे प्रधानपुरुष: मया तव लवणम् खाद्यते || ७.......अब गोली खा. ||अधुना गोलीम् खाद || ८.......सुअर के बच्चो... ||हे सुकराणां अपत्यानि.....|| ९.......तेरा क्या होगा कालिया...| हे कालिया तव किं भवेत् ? १०......ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर ॥ ठाकुर, यच्छतु मह्यं तव करौ || ११......हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर है| ||अहं आंग्लपुरुषाणाम् समयस्य कारानिरीक्षक: अस्ति || १२..... तुम्हारा नाम क्या है बसंती? ||बसन्ति किं तव नामधेयम् ? १३......होली क...

शाम को नहीं करना चाहिए ये 7 काम, इन्हें माना जाता है गरीबी बढ़ाने वाला

  हिंदू धर्म में किसी भी कार्य को करने के लिए समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। फिर वो समय चाहे शादी का हो पूजन हो या अन्य किसी काम का। शास्त्रों में बताया गया है कि हर काम को यदि उचित समय पर किया जाए तो उसके बेहतर परिणाम मिलते हैं। यदि अपने जीवन को हमेशा खुशहाल और समृद्धि से परिपूर्ण रखना चाहते हैं तो यहां बताए जा रहे हैं कुछ कामों को शाम के समय कभी न करें। शाम को जब मंदिर में व अन्य धार्मिक स्थल पर भगवान की आराधना की जाती है। उस समय कुछ कार्यो को करना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इन कामों को शाम के समय करने से घर में हमेशा दरिद्रता रहती है। आमदनी अधिक होने पर भी पैसा नहीं टिकता है। आइए जानते हैं कौन से है वो काम जिन्हें सूर्यास्त के समय करना निषेध माना गया है। 1. सोना नही चाहिए-   सूर्यास्त के समय किसी को भी लेटना या सोना नहीं चाहिए। इस समय को भगवान की आराधना और आरती आदि के लिए श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्र कहते हैं यदि आप बीमार नहीं है या कोई अन्य आवश्यक कारण नहीं है तो सूर्यास्त के समय नहीं सोना चाहिए। इस समय सोने से लक्ष्मी नाराज होती हैं और व्यक्ति बीमार और स...
ना स्वर है ना सरगम है, ना लय ना तराना है हनुमान के चरणों में, एक फूल चढ़ाना है ।। टेर।। तुम बाल रूप में प्रभु, सूरज को निगल डाले अभिमानी सुरपति के, सब दर्प मसल डाले बजरंग हुए तब से, संसार ये जाना है ।। हनुमान ।। सब दुर्ग ढहा करके, लंका को जलाये तुम सीता की खबर लाये, लक्ष्मण को बचाये तुम प्रिय भरत सरिस तुम को, श्रीराम ने माना है ।। हनुमान ।। जब राम नाम तुम ने, पाया ना नगीने में तुम फाड़ दिये सीना, सीया राम थे सीने में विस्मित जग ने देखा, कपि राम दीवाना है ।। हनुमान ।। हे अजर अमर स्वामी, तुम हो अन्तर्यामी ये दीन हीन चंचल अभिमानी अज्ञानी तुम ने जो नजर फेरी, फिर कौन ठिकाना है ।। हनुमान ।।

गरीब

गरीब कॆ घर बॆटियाँ और रॊटियाँ दॊनॊं आनॆ सॆ कतराती हैं ॥ क्यॊंकि गरीब कॆ घर अपनॆ आप कॊ अब यह सुरक्षित नहीं पाती हैं ॥ इस समाज मॆं दॊ दानव ख़ास हैं, जिनकॆ नाम अमीर और अय्याश हैं, एक की नज़र हॊती है गरीब की रॊटी पर ॥ और दूसरॆ की नज़र है गरीब की बॆटी पर ॥ सच ही तॊ है एक गरीब बाप दॊ वक्त की रॊटी भला कैसॆ कमायॆगा ॥ और बिना दहॆज़ अपनी बॆटी का हाँथ किस कॊ थमायॆगा ॥ बॆचारा गरीब यदि मॆहनत करकॆ रॊटी कमा भी लॆता है और अपनी बॆटी का हाँथ बिना दहॆज़ थमा भी दॆता है ॥ नतीजा गरीब की रॊटी घर मॆं बिना घासलॆट कॆ पिघल जाती है ॥ और बॆटी ससुराल मॆं दहॆज़ कॆ घासलॆट सॆ जल जाती है ॥ दहॆज़ कॆ घासलॆट सॆ जल जाती है ॥ '/

भगवान संदेश वाहक है और धर्मग्रंथ उनके संदेश

भगवान कृष्ण ने 18 अध्याय का उपदेश देने में अपना वक्त क्यों जाया किया। अर्जुन के हर सवाल का जवाब देने में? आखिर अर्जुन को धर्मयुद्ध के लिए समझाने-बुझाने, मनाने, राजी करने की क्या जरूरत थी? भगवद् गीता की जरूरत ही क्या थी? कृष्ण को तो अर्जुन से बस यह कहना चाहिए था, 'मेरे तीन चक्कर लगाओ, थोड़ा घी और दूध चढ़ाओ, देह पर चंदन का लेप लगाओ, मेरे चरणों पर लेट जाओ, चार बार साष्टांग प्रणाम करो और धनुष-बाण उठाकर युद्ध के मैदान पर कूद पड़ो... तुम्हारी जीत तय है।' जरा इस बारे में सोचें कि आखिर अर्जुन को इतना संघर्ष क्यों करना पड़ा? उनके लिए क्या संभव नहीं था? कृष्ण सिर्फ एक नजर से उन सभी का सफाया कर सकते थे, जो धर्मयुद्ध में उनके विरुद्ध मैदान पर आ धमके थे।   जरा सोचें:  यदि ईश्वर की पूजा-अर्चना ही पर्याप्त है तब बाइबिल क्यों है? कुरान क्यों है? भगवद् गीता क्यों है? किसी धर्मग्रंथ की जरूरत क्यों है? यदि हर रविवार चर्च में जाना और प्रभु ईशु पर भरोसा जताना ही काफी है तो फिर ईशु ने 'क्या करें और क्या नहीं करें' का उपदेश देने में अपने तीन साल क्यों खराब किए, जो बाद में बाइबिल के रूप में ...

बुद्धिमान लोग तलाशते हैं ऐसे काम, जिनसे तनाव दूर हो और कमाई भी हो

बुद्धिमान लोग ऐसी गतिविधियों की तलाश में रहते हैं। उनके लिए ये गतिविधियां दोहरी खुशी लाती हैं। तनाव तो दूर करती ही हैं,  कमाई भी हो जाती है। यानी,  आम के आम,  गुठलियों के दाम।   अगर आप स्कूलों-कॉलेजों पर बारीकी से नजर रखें तो पाएंगे कि शिक्षकों के कुछ पसंदीदा छात्र होते हैं। भले ही वे पढ़ाई-लिखाई में सबसे अच्छे न हों, फिर भी सबके प्रिय होते हैं। आखिर ये कौन छात्र हैं? ये वे छात्र होते हैं, जिनमें नेतृत्व के गुण होते हैं, जो एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में हिस्सा लेते हैं और सभी तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों में अपने संस्थान की अगुवाई करते हैं। वे अपने संस्थान के झंडाबरदार होते हैं। कोई शक नहीं कि हर संस्थान ऐसे छात्रों को हमेशा याद करते हैं।   वास्तव में ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। शैक्षणिक संस्थानों द्वारा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना अब सामान्य बात होती जा रही है। यकीनन, यह सकारात्मक संकेत है और उन संस्थानों की तारीफ होनी चाहिए जो ऐसे कार्यक्रम आयोजित कराते हैं। व्यापक नजरिए से देखें तो एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में ड्राम...

अगर ध्यान रखेंगे ये बात तो कभी उदास नहीं होंगे....

व्यक्ति निर्भय हो और उसका मन भीतर से शांत हो तो ऐसे लोग परमात्मा को सरलता से पा सकते हैं। परमात्मा को पाने का यह अर्थ न समझा जाए कि वे व्यक्ति के रूप में साक्षात मिल जाएंगे। परमात्मा को पाने का मामला अनुभूति से जुड़ा है। दुनिया में कई तरह के भय हैं।  धन, प्रतिष्ठा, रिश्ते, सम्मान और अपना शरीर, इन सबके नुकसान का भय मनुष्य को सताता है। आदमी इन्हीं के भय में उलझ जाता है और भूल जाता है कि सबसे बड़ा भय है मृत्यु का भय। जिसने मृत्यु के भय को ठीक से समझ लिया, वह इन भय के टापुओं से मुक्ति पा लेगा। सुंदरकांड में रावण के दरबार में रावण हनुमानजी को मारने का फैसला ले चुका था। जब उसे रोका गया तो उसने पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया। सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।। यह सुनते ही रावण हंसकर बोला - अच्छा, तो बंदर को अंग-भंग करके भेज दिया जाए। जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउं मैं तिन्ह कै प्रभुताई।  जिनकी इसने बहुत बढ़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता तो देखूं। यहां रावण और हनुमानजी भय और निर्भयता की स्थिति में खड़े हुए हैं। रावण बार-बार इसीलिए हंसता है, क्योंकि वह अपने भय ...

शास्त्रों को समझने के लिए इस नजरिए को अपनाएं....

नई पीढ़ी के बच्चे जब भी कोई ऐसा काम करते हैं, जो पुराने लोग नहीं कर चुके हों या जिन्हें वे पसंद न करते हों ये बुजुर्ग उन्हें समझाने पर तुल जाते हैं। मैंने देखा है कि इसके लिए कई बार पुराने लोग शास्त्रों का सहारा लेते हैं। कहते हैं कि रामायण में यह लिखा है, बाइबल यह कहती है और कुरान में ऐसे समझाया है। ये प्रमाण इन बच्चों को प्रभावित कर दें, जरूरी नहीं है। यह सही है कि ग्रंथ में लिखी बातों के प्रति इस धरती पर असीम श्रद्धा है। लिखने वाले महापुरुषों ने इस देश, काल, परिस्थिति में जो देखा, समझा और अनुभूत किया वही पृष्ठों पर उतर आया।वक्त बदला तो समझ भी बदली। जीवनशैली की आवश्यकताएं वैसी नहीं रही। इसीलिए लोग शास्त्रों के शब्दों के भीतर जीवन उपयोगी बातें ढूंढऩे लगे। शब्दों की भरमार होने के कारण और समय न होने से लोगों ने इस क्रिया को भी छोड़ दिया। फिर आजकल का समय तो ऐसा है कि कागज का प्रमाण सत्य से बहुत दूर हो गया। सभी जानते हैं कि अवकाश लेना हो तो बीमारी का सर्टिफिकेट लगा दो। गलती से डेथ सर्टिफिकेट अगर दे दिया जाए और आदमी जीवित रह जाए तो उसे खुद को जिंदा साबित करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि ...

खुशहाल गृहस्थ जीवन के लिए याद रखें ग्रंथों की ये छोटी सी बात...

गृहस्थी कौन सी सबसे ज्यादा सुखी मानी जाती है। इस बात को लेकर लंबी बहस हो सकती है लेकिन सच तो यही है कि गृहस्थी वो ही सबसे ज्यादा सुखी है जहां प्रेम, त्याग, समर्पण, संतुष्टि और संस्कार ये पांच तत्व मौजूद हों। इनके बिना दाम्पत्य या गृहस्थी का अस्तित्व ही संभव नहीं है। यदि इन पांच तत्वों में से कोई एक भी अगर नहीं हो तो रिश्ता फिर रिश्ता नहीं रह जाता, महज एक समझौता बन जाता है। गृहस्थी कोई समझौता नहीं हो सकती। इसमें मानवीय भावों की उपस्थिति अनिवार्य है। आइए, भागवत में चलते हैं, देखिए महान राजा हरिश्चंद्र के चरित्र और उनकी पत्नी तारामति के साथ उनके दाम्पत्य को। हरिश्चंद्र अपने सत्य भाषण के कारण प्रसिद्ध थे। वे हमेशा सत्य बोलते थे, उनके इस सत्यव्रत में उनकी पत्नी तारामति भी पूरा सहयोग करती थी। वो ऐसी कोई परिस्थिति उत्पन्न नहीं होने देती जिससे सत्यव्रत टूटे।  अब आइए, देखें उनके दाम्पत्य में ये पांच तत्व कैसे कार्य कर रहे थे। पहला तत्व प्रेम, हरिश्चंद्र और तारामति के दाम्पत्य का पहला आधार प्रेम था। हरिश्चंद्र, तारामति से इतना प्रेम करते थे कि उन्होंने अपने समकालीन राजाओं की तरह कभी को...

जब लगातार मिल रही हो असफलता तो अपनाए ये फंडा

सफलता की ललक ने अच्छे-अच्छों को बेताब कर दिया है। फिर सफलता के साथ 'लगातार' शब्द और जुड़ गया है। निरंतर सफल रहने का नशा जब चढ़ता है तो मनुष्य कुछ बातें भूल जाता है। उसमें से एक यह है कि जब कभी असफल होना पड़े, तब क्या करेंगे। ऐसे लोगों की असफलता उन्हें तोड़ देती है। वे या तो गुस्से में आकर दूसरों को दोष देने लगते हैं या डिप्रेशन में डूबकर खुद का नुकसान करते हैं। सफलता के लिए खूब तैयारी करिए, पर थोड़ी बहुत तैयारी असफलता प्राप्त होने पर क्या करें इसकी भी करते रहिए। इसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण मददगार होगा।   अध्यात्म में समर्पण को महत्व दिया गया है। जब असफलता हाथ लगे तो थोड़ी देर के लिए समर्पित हो जाइए। अपनी महत्वाकांक्षा को समाप्त नहीं करना है, विश्राम देना है। हो सकता है आपके प्रतिद्वंद्वी इस स्थिति का लाभ उठाएं, पर उन्हें नहीं मालूम कि आप इस विश्राम में उनसे भी ज्यादा लाभ उठा रहे हैं। हरेक के भीतर एक सूरज है। जब हम सफलता की यात्रा पर निकलते हैं, तो हम ही उस सूरज को अपनी तीव्रता के बादल से ढंक देते हैं। जैसे बाहर का सूरज उगता है न, ऐसे ही भीतर भी एक सूरज उगाना पड़ता है। थोड़...

जब मेहनत से कमाया धन खर्च करें तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें

हमारा देश साधना प्रधान देश है। हम सर्वधर्म में जीते हैं। धर्म में सत्संग का बड़ा महत्व है इस कारण हमारे साधनारत लोग ज्यादातर मौकों पर साधना और सत्संग पर ही टिके रहे। वे भूल ही गए कि इसकी श्रेष्ठतम परिणति सेवा होना चाहिए। धार्मिक व्यक्ति की विशेषता होना चाहिए कि वह दूसरों की पीड़ा को समझे। परपीड़ा न समझना एक तरह से अधर्म ही है। असल में हमने दूसरे की पीड़ा, दु:ख मिटाने के लिए जो सेवा हाथ में ली थी वह कर्मकाण्ड जैसी ही रही। लोगों ने सेवा को समय बिताने का साधन और अपने अहंकार के पोषण का माध्यम बना लिया। हम तो अन्दर से अस्वस्थ हैं और दूसरों की बीमारी मिटाने में लग जाएं तो सेवा भी ढोंग, बोझ होगी। लेकिन जो सेवा, साधना और सत्संग से होकर गुजरेगी वह पहले हमें भीतर से स्वस्थ करेगी तब बाहर सचमुच सेवा घटेगी। सेवा का संबंध धन से भी जुड़ता है। सच्चे सत्संगी धन को अलग दृष्टि से देखेंगे। अध्यात्म ने धन से परहेज नहीं बताया। उसका जोर है धन कमाया जाए, लेकिन सही समय पर, जरूरत के साथ खर्च की समझ जरूर हो। कमाएं विवेक पूर्वक और खर्च करें विचार पूर्वक।   धन तो अब इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि केवल सुख ...

बालि बिना थके सुबह-सुबह दौड़कर करता था समुद्रों की परिक्रमा

श्रीराम ने अपने मित्र सुग्रीव के कष्टों को दूर करने के लिए उसके भाई बालि का वध किया था। बालि बहुत ही पराक्रमी और शक्तिशाली था। श्रीराम ने छिपकर बालि पर बाण चलाए थे और इस कारण वह मारा गया। श्रीराम के इस प्रसंग को लेकर अलग-अलग मतभेद भी हैं कि श्रीराम ने छिपकर बालि का वध किया जो कि गलत है। कई लोग इसे सही भी मानते हैं।  बालि और रावण बालि और रावण के विषय में प्रसंग मिलता है कि एक समय रावण बालि से युद्ध करने पहुंच गया था। तब बालि ने रावण को अपने बगल में दबाकर समुद्रों की परिक्रमा की थी। इसके बाद रावण ने अपनी हार मान ली थी। बालि वध से पूर्व जब श्रीराम ने सुग्रीव के शत्रु बालि को खत्म करने की बात कही थी तो सुग्रीव ने उसके पराक्रम और शक्तियों की जानकारी श्रीराम को दी थी। सुग्रीव ने श्रीराम को बताया कि बालि सूर्योदय से पहले ही पूर्व, पश्चिम और दक्षिण के सागर की परिक्रमा करके उत्तर तक घूम आता है। ये है प्रसंग जब रावण सीता का हरण करके लंका ले गया तो सीता की खोज करते हुए श्रीराम और लक्ष्मण की भेंट हनुमान से हुई। ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान ने सुग्रीव और श्रीराम की मित्रता करवाई...

सफल होने के लिए ये तीन सूत्र याद रखना बेहद जरूरी है

दूसरे आपको पसंद करें इसकी तैयारी आपको ही करनी होगी। यदि आप बहुत अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं, अनुभवी भी नहीं हैं तो आपको कोई क्यों पसंद करेगा। किसी सिस्टम में आपसे अधिक एजुकेटेड, टैलेंटेड लोग हों तो आप पीछे रह जाएंगे। अतिरिक्त परिश्रम आज के समय में वह पूंजी है जिससे आप सफलता का ताला खोल सकते हैं। हर बॉस आपकी इस योग्यता का कायल होगा। उसे भरोसा रहेगा कि भले ही आपके पास ऊंची शिक्षा नहीं है, लेकिन अतिरिक्त परिश्रम आपकी खूबी है। अतिरिक्त परिश्रम का मतलब जरूरत से ज्यादा काम करना नहीं होता।   इसका अर्थ है कि जो काम किया जाए जमकर किया जाए। काम में पूरी तरह डूब जाएं। अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त ऊर्जा चाहिए। चलिए, अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक आध्यात्मिक प्रयोग करते हैं। प्रतिदिन थोड़ी देर के लिए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएं, पैरों को चौड़ा करें। हो सके तो थोड़ा कूद लें, फिर सामान्य हो जाएं। कुछ ऐसी एक्सरसाइज करें जैसे तेज हवा चलने पर पेड़ हिल रहा है। अपने शरीर को सुविधानुसार हिला-डुला लें और फिर खामोशी से खड़े हो जाएं। मन ही मन कल्पना करें कि हम एक पेड़ बन गए। हमारी जड़ें पृथ्वी में...

पति के लिए अच्छी नहीं होती हैं पत्नी की ये बातें

पति-पत्नी का रिश्ता आपसी तालमेल और एक-दूसरे को समझने की क्षमता के आधार पर ही सुखद हो सकता है। जिन घरों में इस बात की कमी रहती है, वहां अशांति और दुख का वातावरण बना रहता है। जब अशांति और मानसिक तनाव बढ़ता है तो पति और पत्नी, एक-दूसरे को अपना शत्रु समझने लगते हैं। आचार्य चाणक्य ने पति-पत्नी के लिए एक नीति में बताया है कि कब किसी पत्नी के लिए उसका पति ही सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है...   चाणक्य कहते हैं- लुब्धानां याचक: शत्रु: मूर्खाणां बोधको रिपु:। जारस्त्रीणां पति: शत्रुश्चौराणां चंद्रमा: रिपु:।।   इस श्लोक आचार्य ने बताया है कि यदि कोई स्त्री बुरे चरित्र वाली है, अधार्मिक कर्म करने वाली है, पराए पुरुषों के प्रति आकर्षित होने वाली है तो उसका पति ही सबसे शत्रु होता है। अधार्मिक कर्म वाली स्त्री को पति ऐसे काम करने से रोकता है तो वह उसे शत्रु समझने लगती है।   यदि पति या पत्नी, दोनों में से कोई भी एक बुराइयों से ग्रसित है तो दूसरे को भी इसके बुरे परिणाम झेलना पड़ते हैं। पत्नी की गलतियों की सजा पति को भुगतनी पड़ती है और पति की गलतियों की सजा पत्नी को। इसी वजह स...