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जब लगातार मिल रही हो असफलता तो अपनाए ये फंडा

सफलता की ललक ने अच्छे-अच्छों को बेताब कर दिया है। फिर सफलता के साथ 'लगातार' शब्द और जुड़ गया है। निरंतर सफल रहने का नशा जब चढ़ता है तो मनुष्य कुछ बातें भूल जाता है। उसमें से एक यह है कि जब कभी असफल होना पड़े, तब क्या करेंगे। ऐसे लोगों की असफलता उन्हें तोड़ देती है। वे या तो गुस्से में आकर दूसरों को दोष देने लगते हैं या डिप्रेशन में डूबकर खुद का नुकसान करते हैं। सफलता के लिए खूब तैयारी करिए, पर थोड़ी बहुत तैयारी असफलता प्राप्त होने पर क्या करें इसकी भी करते रहिए। इसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण मददगार होगा।
 
अध्यात्म में समर्पण को महत्व दिया गया है। जब असफलता हाथ लगे तो थोड़ी देर के लिए समर्पित हो जाइए। अपनी महत्वाकांक्षा को समाप्त नहीं करना है, विश्राम देना है। हो सकता है आपके प्रतिद्वंद्वी इस स्थिति का लाभ उठाएं, पर उन्हें नहीं मालूम कि आप इस विश्राम में उनसे भी ज्यादा लाभ उठा रहे हैं। हरेक के भीतर एक सूरज है। जब हम सफलता की यात्रा पर निकलते हैं, तो हम ही उस सूरज को अपनी तीव्रता के बादल से ढंक देते हैं।

जैसे बाहर का सूरज उगता है न, ऐसे ही भीतर भी एक सूरज उगाना पड़ता है। थोड़ा सा फर्क है कि भीतर का सूरज उगा ही हुआ है, बस उसके बादल छांटना है। यह घटना समर्पण के दौरान बड़ी आसानी से घटती है। थोड़ी देर स्वयं पर टिकेंगे तो आपके भीतर की विशेषताएं अपने आप अंगड़ाई लेने लगेंगी। और फिर आप तैयार हैं सफलता प्राप्त करने की अगली यात्रा के लिए।   

सफलता को शांति से जरूर जोड़ें
मेहनत का शांति से कोई लेना-देना नहीं है। खूब परिश्रम करने वाले लोग भीतर से काफी परेशान नजर आएंगे। अशांति का दूसरा नाम नर्क है जबकि शांति में स्वर्ग है। जितनी मेहनत करके हम नर्क प्राप्त करते हैं, उससे आधी मेहनत में हमें स्वर्ग मिल सकता है। आपके लिए सफलता का जो भी मापदंड हो उसे शांति से जरूर जोडि़ए। अब तो लोग इतने अशांत रहते हैं कि उन्हें इसका अहसास ही नहीं होता। वे मानते हैं कि इतनी अशांति रखे बिना सफलता नहीं मिलेगी।  लंबे समय में इस अशांति के परिणाम घातक होंगे। इसका बाय प्रॉडक्ट है बीमारियां। हमें तब पता चलता है जब अशांति हमारे शरीर को पर्याप्त कुतर चुकी होती है। अशांत व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण को भी दूषित करता है।

यदि आप अपने कार्यस्थल पर अशांत हैं तो फिर भी मामला धक जाएगा, क्योंकि वहां लोगों के तनाव के कारण नेगेटिविटी पहले ही काफी रहती है। किंतु अपनी अशांति से बड़ा नुकसान करेंगे आप अपने घर में। हम परिवार के लिए बहुत दौड़-भाग करते हैं पर उसमें हम अशांति के कण छोड़कर सब किए-धरे पर पानी फेर देते हैं। जरा सोचिए कौन-सी बातें आपको शांति देती हैं, उन्हें जरूर करें। उसमें टीवी देखना, घूमना, पढऩा, शाम को भी स्नान करना, किसी से फोन पर बतियाना आदि। बारी-बारी से दिनभर में ये काम जरूर कर लें। चिडिय़ा जैसे तिनके-तिनके चुनकर घोंसला बनाती है, हमें भी तिनका-तिनका शांति चुननी पड़ेगी। थैली भर सफलता में दो-चार तिनके शांति के पर्याप्त होंगे।

अच्छे व्यक्तियों का सदुपयोग करें
जीवन की यात्रा में हमें अच्छे-बुरे लोग मिलते हैं। बुरों से बचना है और अच्छों का सदुपयोग करना है। एक विचारधारा कहती है यदि आपके साथ कुछ गलत हुआ है तो उसकी जिम्मेदारी या तो हालात पर है या दूसरे व्यक्तियों पर यानी आप जिम्मेदार नहीं हैं। इसलिए जब भी कभी ऐसा हो, इन दोनों पर ही काम करिए यानी खुद को मुक्त रखें। दूसरी ऋषि-मुनियों की विचारधारा कहती है मनुष्य की खुद की भी जिम्मेदारी है। इसलिए स्वयं का मूल्यांकन भी करिए। सुंदरकांड के इस प्रसंग में समुद्र रामजी की मदद करने के लिए तैयार हो गया। शुरुआत में समुद्र द्वारा जो विरोध किया जा रहा था इसमें श्रीराम केवल हालात पर नहीं टिके। उन्होंने खुद पर भी काम किया। उनकी दो विशेषताएं थीं - खुद का पराक्रमी होना और दूसरे के लिए मददगार।

समुद्र समझ गया कि श्रीराम से उलझने से नुकसान होगा। अत: वह उनसे कहता है- एहिं सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी।। सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रन धीरा।। 'इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले पाप के राशि दुष्ट मनुष्यों का वध कीजिए। कृपालु और रणधीर श्रीराम ने समुद्र के मन की पीड़ा सुनकर उसे तुरंत ही हर लिया समुद्र के उत्तर तट पर कुछ दुष्ट लोग रहते थे। वह उनसे परेशान था। समुद्र जान चुका था कि राम मेरी मदद करेंगे। राम ने समुद्र के मन की पीड़ा को सुनकर अपने बाण से उन दुष्ट लोगों को मार दिया। यह उदाहरण है अपने सामने आए हुए अच्छे व्यक्ति के सदुपयोग का।

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