अपने-पराए लोगों की परख करने के लिए आचार्य चाणक्य ने कहते हैं-
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:।।
आचार्य ने इस श्लोक में व्यक्ति की परख के लिए अलग-अलग स्थितियां बताई हैं, ये स्थितियां इस प्रकार हैं...
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:।।
आचार्य ने इस श्लोक में व्यक्ति की परख के लिए अलग-अलग स्थितियां बताई हैं, ये स्थितियां इस प्रकार हैं...
- जब कोई व्यक्ति किसी भयंकर बीमारी से पीडि़त हो और उस समय जो लोग साथ देते हैं, वे ही सच्चे हितैषी होते हैं।
- जब किसी व्यक्ति के जीवन में कोई भयंकर दुख आ जाए या किसी मुकादमे, कोर्ट केस में फंस जाए, उस समय जो इंसान गवाह के रूप में साथ देता है वही मित्र कहलाने का अधिकारी होता है।
किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय पर जो लोग उपस्थित होते हैं वे सच्चे हितेषी होते हैं।
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