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Showing posts from December 18, 2014

बौड़म जी बस में – अशोक चक्रधर की हास्य कविता

अशोक चक्रधर हिन्दी के एक प्रसिद्ध हास्य कवि हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से पाठकों को एक लंबे समय तक हंसाया हैं. अशोक चक्रधर की उन्हीं कुछ हास्य रचनाओं में से एक आपके लिए हाजिर है जो आपको बहुत हंसाएगी. बस में एक आम आदमी की व्यथा को अशोक चक्रधर ने बहुत ही सजग रुप से दर्शाया है.आप भी लीजिए एक अच्छी हास्य कविता का आनंद. बस में थी भीड़ और धक्के ही धक्के, यात्री थे अनुभवी, और पक्के। पर अपने बौड़म जी तो अंग्रेज़ी में सफ़र कर रहे थे, धक्कों में विचर रहे थे। भीड़ कभी आगे ठेले, कभी पीछे धकेले। इस रेलमपेल और ठेलमठेल में, आगे आ गए धकापेल में। और जैसे ही स्टॉप पर उतरने लगे, कंडक्टर बोला- ओ मेरे सगे! टिकट तो ले जा! बौड़म जी बोले- चाट मत भेजा! मैं बिना टिकिट के भला हूँ, सारे रास्ते तो पैदल ही चला हूँ।

पुलिस – हास्य कविता – Hasya kavita

पुलिस – हास्य कविता        आधुनिक काव्य शैली का प्रयोग करते हुए कविता को बहुत ही सरल तो बनया ही जा सकता है साथ ही इसके अर्थ को भी बहुत ही मजेदार बना दिया जाता है. काव्य की इसी शैली को अपनी पहचान बना कर कई कवियों मे अपनी रचनाओं में रंग बिखेरा है जिनमें से एक है रमेश कौशिक जी. आज रमेश कौशिक की हास्य कविता संग्रह से एक खास कविता आप सभी के लिए हाजिर है जिसका नाम है पुलिस. इस कविता में बड़े ही सरल अंदाज में रमेश कौशिक जी ने पुलिस के बर्ताव और आम आदमी के मन में पुलिस के प्रति डर और क्रोध को दर्शाया है. पुलिस जब बच्चा था अगर कभी मैं रो देता था दादी अम्मा कहती मुझसे पुलिस पकड़ कर ले जाएगी वरना जल्दी से चुप हो जा. अब जब बड़ा हुआ तो मैं यह सोच रहा हूँ दादी अम्मा तुम झूठी थीं रोता देख पुलिस खुश होती हँसता देख पकड़ ले जाती.

मानस खत्री की एक प्रसिद्ध हास्य रचना : टेलीविजन (हास्य कविता)

हिन्दी हास्य रचनाओं  के इस ब्लॉग में आपके लिए हाजिर है हास्य कवि मानस खत्री की एक प्रसिद्ध रचना. टेलीविजन, आप और हम सब इसके बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. टेलीविजन की इसी बात को मानस खत्री ने अपनी रचना से सबको बताया है. टेलीविज़न टी.वी. का अपना ही एक मज़ा है, एक दिन टी.वी. से क्या दूर रह गए, मनो मिल गई सजा है. ये टी.वी. वाले भी क्या गज़ब ढाते हैं, एक तरफ सभ्यता का पाठ पढ़ाते हैं, तो दूसरी तरफ सास-बहु को खुद ही लड़वाते हैं. ‘एकता कपूर’ जी के सेरि़लों ने खोले हैं महिलाओं के नयन, अब हर सास ‘तुलसी’ और ‘पार्वती’ जैसी बहुओं का ही करती है चयन. टी.वी. पर अधिकतम कार्यक्रम महिलाओं के ही आते हैं, एक अकेले ‘संजीव कपूर’ हैं, पर लानत है वो भी, खाना बनाना सिखाते हैं. टी.वी पर भी चढ़ा है, आधुनिकता का रंग, नामुमकिन है टी.वी. देखना, घर-परिवार के संग. सबके अपने-अपने हैं Views, कोई देखता है कार्यक्रम, तो कोई News. रात भर ये News चैनल वाले भी, छोड़ते हैं आजब-गज़ब भौकाल, कोई ‘हत्यारा कौन’, तो कोई ‘काल-कपाल-महाकाल’. लेकिन कम से कम एक आराम है, ‘सिंदूर’ और ‘क...

काका हाथरसी का हास्य कविता – अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार

हास्य कविताओं  के इस संग्रह में एक बार फिर हम लेकर आएं है एक बेहतरीन हास्य कविता. काका हाथरसी के हास्य संग्रह से एक छोटी सी कविता आप लोगों को गुदगुदाने के लिए हाजिर है. यह कविता भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता पर आधारित है. साथ ही काका हाथरसी बढ़े प्यार से सबको दाढ़ी की महिमा भी बता रहे हैं. बिना टिकट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू पकड़ें टी. टी. गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना दाढ़ी- महिमा ‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन जाते शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर जनता के सिरमौर, यही निष्कर्ष निकाला दाढ़ी थी, इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’ कहं ‘काका’, नारी सुंदर लगती साड़ी से उसी भांति...

Kaka HathRasi ki Hasya kavita

जिंदगी में जब तक हास्य का तड़का ना हो तब तक वह बहुत ही फीका रहता है. हंसी जिंदगी में एक अलग ही रंग फैला देती है. एक छोटी से मुस्कराहट भी आपके चेहरे की तकान और उदासी मिटाने के लिए काफी होती है. हास्य के इसी महत्व को समझते हुए हास्य कवियों ने ऐसी ऐसी रचनाएं लिखी जिसे पढ़ मन बरबस ही हंसने को आतुर हो जाता है. काका हाथरसी की हास्य कविताएं ना सिर्फ हमें हंसाती है बल्कि उनका असर समाज पर भी पड़ता है. काका हाथरसी ने हिंदी हास्य कविता के रस को समाज कल्याण के लिए इस्तेमाल किया. उनके हंसी वाले भाव में कभी कभी इतना गूढ़ रहस्य छुपा होता था कि वह समाज में फैली कुरीतियों के लिए एक तरह का वार होता है. वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥ मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ । है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥ गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण । निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥ आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा । हूँ सत्य-अहिंसा का...

आतंकि

ISIS के आतंकियों ने सड़क पर एक कार को रोका और उसके अंदर मौजूद पति-पत्नी से पूछा- "बताओ तुम मुस्लिम हो या नॉन-मुस्लिम ? वे दंपति ईसाई थे । उन आतंकियों ने उनसे फिर पूछा- "जल्दी बताओ तुम मुस्लिम हो या नॉन-मुस्लिम ?" पति ने जवाब दिया- "हम मुस्लिम हैं ?" आतंकियों ने उनसे फिर कहा- "तो फिर कुरान में से कुछ सुनाओ ?" पति ने कुछ हड़बड़ाते हुए उन्हें बाइबिल में से कुछ लाइने सुना दीं । इसके बाद आतंकियों ने उन्हें जाने दिया । उनके गढ़ से कुछ आगे निकलकर पत्नी ने पति से कहा- "यह जानते हुए भी कि वह लाइने कुरान की नहीं थीं तुमने खतरा मोल लेकर ऐसा क्यूँ लिया ?" पति ने बहुत ही बेहतरीन जवाब दिया- "अगर इन लोगों ने वाकई में ही कुरान पढ़ा होता तो यह बेगुनाहों को कभी नहीं मारते ?"