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Showing posts from December 25, 2014

रत्न से ज्यादा बड़े

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और (स्वर्गीय) मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा पर शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा। जब से बीजेपी अपने दम पर सत्ता में आई है, इन दोनों को यह सरकारी सम्मान दिए जाने की चर्चा किसी न किसी रूप में होती रही है। यही नहीं, जब पार्टी सत्ता से बाहर थी, तब भी इन दोनों को यह सम्मान देने की मांग करती थी। लेकिन जरा गौर से सोचें तो सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न मिलने के एक साल बाद यही सम्मान अटल जी और मालवीय जी को दिए जाने का कोई मतलब है? हमारे देश में हरेक राजनीतिक दल के अपने-अपने नायक हैं, जिन्हें सर्वोच्च सम्मान दिलाना ये अपना फर्ज समझते हैं। दरअसल इन आइकन्स के जरिए ये पार्टियां अपने वोट बैंक को संतुष्ट करना चाहती हैं। विपक्ष में रहते हुए ये अपने फायदे वाली जगहों पर उनके नाम की रट लगाती हैं और सत्ता में आने के बाद तुरंत उन्हें सम्मानित करने की कोशिश करती हैं। इस पर विवाद भी होते हैं। हर बार एक तबका निर्णय को लेकर असंतुष्ट रहता है। भारत जैसे विशाल और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों का चयन आसान नहीं है। संभव है जिस तबके के पास...

काले शीशे में अमेरिका

अमेरिका के मिसूरी  प्रांत में एक बार फिर गोरे पुलिस ऑफिसर की गोली से एक ब्लैक टीनेजर मारा गया। पुलिस के मुताबिक गोली अफसर को आत्मरक्षा में चलानी पड़ी क्योंकि उस नौजवान ने पुलिसकर्मी पर बंदूक तान दी थी। इस बार भी पुलिस के बयान पर काफी सवाल उठाए जा रहे हैं। खास तौर पर अमेरिका की ब्लैक आबादी में लगातार हो रही इस किस्म की पुलिस कार्रवाइयों को लेकर बहुत गुस्सा है। बीते अगस्त में इसी मिसूरी के फर्ग्युसन शहर में माइकल ब्राउन नाम के एक निहत्थे युवक की एक गोरे पुलिसकर्मी द्वारा हत्या के बाद से अमेरिकी प्रशासन तंत्र का जो रूप सामने आया है वह वाकई चौंकाने वाला है। ब्राउन की हत्या के बाद जिस तरह अमेरिकी ब्लैक समुदाय की ओर से व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ वह यह दर्शाने के लिए काफी था कि सही या गलत, पर इस समूह के मन में सरकारी मशीनरी के प्रति गहरा अविश्वास है। इसके बाद लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाली किसी भी संवेदनशील सरकार का कदम यही हो सकता था कि वह आबादी के इस गरीब, अल्पसंख्यक हिस्से के मन में बैठी गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करे, उसका भरोसा बहाल करे। मगर, ऐसी कोई आकर्षक पहल न तो अम...

यहां पानी में गल गई थी भीम की गदा, पांडवों को मिली थी हत्या के पाप से मुक्ति

राजस्थान की धरती पर अनेक सांस्कृतिक रंग रह पग पर नजर आते हैं। वीर सपूतों की इस धरती पर धर्म और आध्यात्म के भी कई रंग दिखाई देते हैं। कहीं बुलट की बाबा के रूप में पूजा होती है तो कहीं तलवारों के साये में मां की आरती की जाती है तो एक मंदिर ऐसा भी है जिसने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के हमले किए थे नाकाम। ऐसे स्थान के बारे में बता रहा है जहां पानी में गल गई थी भीम की गदा और जिस जगह पर पत्नी संग रहने के लिए भगवान सूर्य को झेलने पड़े थे कष्ट। महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने पूर्वजों की हत्या के पाप से चिंतित थे। लाखों लोगों के पाप का दर्द देख श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांण्ड़व लोहार्गल आये तथा जैसे ही भीम ने यहां के सूर्य कुंड़ में स्नान किया उनके हथियार गल गये। इसके बाद शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।   मान्यता है यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां पत्नी छाया संग विराजते हैं सूर्य भगवान। घने जंगलों के बीच बसा है भगवान सूर्य ...

मान्यताएं: मंदिर से जूते-चप्पल चोरी हो जाए तो समझें ये बातें

मंदिर से जूते-चप्पल चोरी होना आम बात है। इस चोरी को रोकने के लिए सभी बड़े मंदिरों में जूते-चप्पल रखने के लिए अलग से सुरक्षित व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था के बावजूद भी कई बार लोगों के जूते-चप्पल चोरी हो जाते हैं। किसी भी प्रकार की चोरी को अशुभ माना जाता है, लेकिन पुरानी मान्यता है कि जूते-चप्पल चोरी होना शुभ है।   यदि शनिवार के दिन ऐसा होता है तो इससे शनि के दोषों में राहत मिलती है। काफी लोग जो पुरानी मान्यताओं को जानते हैं, वे अपनी इच्छा से ही दान के रूप में मंदिरों के बाहर जूते-चप्पल छोड़ आते हैं। इससे पुण्य बढ़ता है।   पैरों में होता है शनि का वास   ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर और कठोर ग्रह माना गया है। शनि जब किसी व्यक्ति को विपरीत फल देता है तो उससे कड़ी मेहनत करवाता है और नाम मात्र का प्रतिफल प्रदान करता है। जिन लोगों की राशि पर साढ़ेसाती या ढय्या चली रही होती है या कुंडली में शनि शुभ स्थान पर न हो तो उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।   हमारे शरीर के सभी अंग ग्रहों से प्रभावित होते हैं। त्वचा (चमड़ी) और पैरों में श...

तीर्थस्थानों का महत्व

ये तीर्थ वो काम करते आये हैं जो आज की तारीख में मॉडर्न टूरिज्म करता है । हिन्दू धर्म में तीर्थ करना आदि गुरु शंकराचार्यों ने इसीलिए आवश्यक किया है ताकि तीर्थस्थान के आस पास के लोगों के रोज़गार की व्यवस्था हो सके, सांस्कृतिक ज्ञान का आदान प्रदान हो, और व्यक्ति से व्यक्ति का मन का जोड़ बने । इसीलिए हिंदुस्तान के दूर दराज़ के दुर्गम और सुगम सभी स्थानों में तीर्थस्थान मिलते हैं । दक्षिण भारतियों का उत्तराखंड के चार धाम या माता वैष्णव देवी के दर्शन को जाना, उत्तर भारतीय तिरुपति और रामेश्वरम के दर्शन करने जाते हैं । पूर्वी भारतीय पश्चिम में सोमनाथ और सिद्धि विनायक मंदिर जाते हैं और पश्चिम वाले बंगाल के माँ काली के मंदिर जाते हैं । यही तो हमारे देश को एक सूत्र में पिरोता है ! देश के अलग अलग हिस्सों के लोग जब तक एक दूसरे से मिलेंगे नहीं और एक दूसरे को जानेंगे नहीं तब तक एक बड़े परिवार का हिस्सा होने की भावना देशवासियों में कैसे जागृत होगी ? तीर्थस्थान की परंपरा से देश की सीमाएं भी सुरक्षित रहती हैं क्योंकि लोगों का आवागमन सालोंसाल बना रहता है । सोचिये कितनी दूर की सोची थी हमारे शंकराचार्य...

सबका प्रिय बनना है तो याद रखें ये 3 सूत्र

  हमारे यहां शब्दों को भी शस्त्र माना गया है। कुछ शब्द तो जीवनभर के घाव दे जाते हैं। कहते हैं मनुष्य के शरीर में जुबान एक ऐसा अंग है जिस पर चोट लग जाए तो सबसे जल्दी ठीक होती है और शरीर के इस अंग से यदि किसी को चोट पहुंचाई जाए तो जीवनभर उसके ठीक होने की संभावना नहीं होती। कहते हैं लात का तोड़ होता है, बात का नहीं। सुंदरकांड में समापन के नजदीक पहुंचकर समुद्र ने श्रीराम से एक ऐसी पंक्ति बोल दी, जिसे लेकर श्रीरामचरित मानस के शोधकर्ता खूब शोर मचाते हैं। यह चौपाई है - ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताडऩा के अधिकारी।। इसमें पांच लोगों की तुलना की गई है। यदि इसमें नारी नहीं होती तो तुलसीदासजी के विरुद्ध इतना उपद्रव नहीं होता।     कुछ लोगों ने तो उन्हें नारी विरोधी घोषित कर दिया। लोग अपने-अपने ढंग से इसका विश्लेषण करते हैं। मैंने सुना है एक बार एक पति ने इस चौपाई को सुना, फिर पत्नी से कहा, 'इसका अर्थ जानती हो न।' पत्नी ने तुरंत जवाब दिया, 'हां। इसमें चार बातें तुम्हारे लिए कही गई हैं और एक मेरे लिए।' इस प्रसंग को विनोद की दृष्टि से भी देख सकते हैं और गंभीरता से भी। तुल...

हलाला निकह

इस्लाम में हलाला निकह के शिकार ये  क्या शरीयत कानून है ??? हलाला क्या .. मुस्लिम समाज में मुस्लिम  महिलाओं का तलाक के बाद ''हलाला'' से गुजरना कितना दर्दनाक और शर्मनांक हादसा है... शौहर द्वारा 'तलाक' तलाक' 'तलाक' कह देने भर से तुरत प्रभाव से पति और पत्नी का सम्बंध विच्छेद हो जाना एक आश्चर्य है ... और शौहर को गलती का अहसास होने पर पति-पत्नी के सम्बंधों को फिर से बहाल करने के मतलब को हलाला ' कहते हें जहाँ तलाकशुदा पत्नी एक गेर मर्द के साथ निकाह कर एक रात उसके साथ हमबिस्तर हो जिस्मानी रिश्ता कायम करने को मज़बूर होती है. ... उसके बाद नये शौहर से उसको फिर तलाक मिलता है और तब वह पुराने शौहर से फिर निकाह कर अपनी पुरानी जिंदगी में वापस आती है..... इसी शर्मनांक और दर्दनांक प्रक्रिया को हलाला कहते हें जिससे केवल मुस्लिम महिलाओं को गुजरना पड़ता है.... अर्थात पति की खता और पत्नी को सज़ा...... और वह पत्नी जीवन भर उन लम्हों को याद कर सिहर जाती होगी, पीड़ा से गुजारती होगी. .. और फिर अचानक उस एक रात के '' समझौता पूरक शौहर से मुलाकात होने पर उसका केसे साम...

यदि सपने में दिखती है खुद की मृत्यु तो जानिए क्या कहता है ज्योतिष

हम सभी अक्सर सपने देखते हैं। कुछ तो बेहद अजीबो-गरीब होते हैं। जैसे- खुद को उड़ते देखना, खुद की मृत्यु देखना, सपने में पानी देखना आदि। अधिकांश लोगों की यही राय होती है कि सपनों की दुनिया ऐसी होती है, जहां कुछ भी हो सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर सपने का एक विशेष अर्थ होता है, हर सपने में भविष्य का एक संकेत छिपा होता है।   यहां जानिए सर्वाधिक देखे जाने वाले खास सपनों से जुड़ी बातें...   मृत्यु का ख्वाब कई बार हम अपनी मृत्यु का सपना भी देखते हैं। इसे लेकर चिंतित होने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि यह इशारा है कि अब आप अपनी किसी बुराई को छोड़ कर आगे बढऩे के लिए तैयार हैं। यदि किसी प्रिय की मृत्यु का सपना देखें, तो समझ जाएं कि जल्द ही उनके जीवन में कुछ नया और अच्छा घटित होने वाला है।   टूट गए दांत दांतों का सम्बंध हमारे आत्मविश्वास से है। आमतौर पर जो लोग अपनी सुंदरता को लेकर बहुत ज़्यादा सजग होते हैं, उन्हें इस तरह के सपने आते हैं। इसके अलावा यदि आपको महसूस हो कि सामने वाला व्यक्ति आपके बारे में अच्छा नहीं सोच रहा होगा, तब भी ऐसे सपने परेशान कर सकते हैं। ...

The Origins of Christmas: Pagan roots of Xmas

The Origins of Christmas: Pagan roots of Xmas The origins of Christmas go back before Christianity where many ancient cultures celebrated the changing of the seasons. In the northern hemisphere in Europe, for example, the winter solstice, which was the shortest day of the year, occurs around Dec. 25th. These celebrations were based on the decline of winter. Since during winter animals were penned, people stayed in doors, crops didn’t grow, etc., to know that winter was half o ver and on its way out was a time of celebration. In the ancient Roman system of religion, Saturn was the god of agriculture. Each year during the summer, the god Jupiter would force Saturn out of his dominant position in the heavenly realm and the days would begin to shorten. In the temple to Saturn in Rome, the feet of Saturn were then symbolically bound with chains until the winter solstice when the length of days began to increase. It was this winter solstice that was a time of celebration and exchange of gif...

मुसलमान

कट्टरपंथियों ने मुसलमानों का कैसा बेडा गर्क किया हुवा है.. इस पर हर मुसलमान को एक नज़र डालनी चाहिए सन 1483 से पहले अरब और तुर्कों तक प्रिंटिंग प्रेस पहुँच चूका  था.. इतिहास मिलता है इसका की उन्होंने चाइना से शायद ये तकनिकी ली थी या खुद बना लिया था.. मगर जब उस पर किताबें छापना शुरू हुई तो कुरान भी छपी.. तो सुलतान बायजीद द्वितीय ने फतवा जारी कर के प्रिंटिंग प्रेस को हराम बताया और “मौत की सजा का एलान किया अगर किसी ने प्रिंटिंग प्रेस इस्तेमाल किया तो”.. और अरब के भी आलिमों ने ऐसा ही फतवा जारी कर रखा था.. ये फतवा करीब ढाई सौ साल से तीन सौ साल तक जारी रहा और पूरी दुनिया शिक्षा का आदान प्रदान करती रही मगर मुसलमान तीन सौ सालो तक फतवे की वजह से जाहिल बने रहे.. इतना समय बहुत होता है किसी एक सभ्यता को अन्धकार में धकेलने के लिए हमारे बचपन में भी जाने कितने मौलानाओं ने टीवी और पिक्चर हराम कर रखा था और फतवे दे रखे थे.. जाने कितने मुसलमानों के घर के बच्चे टीवी नहीं देख पाते थे अपने माँ बाप की वजह से और आज भी बहुत लोग उस पुराने फतवे को मानते हैं और घर में टीवी नहीं चलने देते हैं.. मगर फिर जब...