पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और (स्वर्गीय) मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा पर शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा। जब से बीजेपी अपने दम पर सत्ता में आई है, इन दोनों को यह सरकारी सम्मान दिए जाने की चर्चा किसी न किसी रूप में होती रही है। यही नहीं, जब पार्टी सत्ता से बाहर थी, तब भी इन दोनों को यह सम्मान देने की मांग करती थी। लेकिन जरा गौर से सोचें तो सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न मिलने के एक साल बाद यही सम्मान अटल जी और मालवीय जी को दिए जाने का कोई मतलब है? हमारे देश में हरेक राजनीतिक दल के अपने-अपने नायक हैं, जिन्हें सर्वोच्च सम्मान दिलाना ये अपना फर्ज समझते हैं। दरअसल इन आइकन्स के जरिए ये पार्टियां अपने वोट बैंक को संतुष्ट करना चाहती हैं। विपक्ष में रहते हुए ये अपने फायदे वाली जगहों पर उनके नाम की रट लगाती हैं और सत्ता में आने के बाद तुरंत उन्हें सम्मानित करने की कोशिश करती हैं। इस पर विवाद भी होते हैं। हर बार एक तबका निर्णय को लेकर असंतुष्ट रहता है। भारत जैसे विशाल और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों का चयन आसान नहीं है। संभव है जिस तबके के पास...