बुद्धिमान लोग ऐसी गतिविधियों की तलाश में रहते हैं। उनके लिए ये गतिविधियां दोहरी खुशी लाती हैं। तनाव तो दूर करती ही हैं, कमाई भी हो जाती है। यानी, आम के आम, गुठलियों के दाम।
अगर आप स्कूलों-कॉलेजों पर बारीकी से नजर रखें तो पाएंगे कि शिक्षकों के कुछ पसंदीदा छात्र होते हैं। भले ही वे पढ़ाई-लिखाई में सबसे अच्छे न हों, फिर भी सबके प्रिय होते हैं। आखिर ये कौन छात्र हैं? ये वे छात्र होते हैं, जिनमें नेतृत्व के गुण होते हैं, जो एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में हिस्सा लेते हैं और सभी तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों में अपने संस्थान की अगुवाई करते हैं। वे अपने संस्थान के झंडाबरदार होते हैं। कोई शक नहीं कि हर संस्थान ऐसे छात्रों को हमेशा याद करते हैं।
वास्तव में ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। शैक्षणिक संस्थानों द्वारा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना अब सामान्य बात होती जा रही है। यकीनन, यह सकारात्मक संकेत है और उन संस्थानों की तारीफ होनी चाहिए जो ऐसे कार्यक्रम आयोजित कराते हैं। व्यापक नजरिए से देखें तो एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में ड्रामा, थिएटर, क्विज, मॉडलिंग, सामाजिक गतिविधियां (निजी क्लबों द्वारा), खेल गतिविधियां (क्रिकेट से लेकर शतरंज तक), नाचना, गाना आदि शामिल हैं। इस सूची में उन गतिविधियों को भी शामिल किया जा सकता है जो स्वास्थ्य और सफाई से जुड़ी हैं और जिनके सबक ताजिंदगी हमारे साथ रहते हैं।
हालांकि, यह थोड़ा अजीब है कि इन सांस्कृतिक आयोजनों में अक्सर वही चेहरे दिखते हैं। वास्तव में इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेते-लेते अलग-अलग संस्थानों के छात्र अच्छे दोस्त बन जाते हैं। इसका नकारात्मक पक्ष यह संकेत है कि अधिकतर छात्र ऐसे एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में हिस्सा नहीं लेते हैं। इसीलिए इन कार्यक्रमों में बार-बार वही छात्र दिखते हैं। हालांकि, पिछले कुछ सालों के मुकाबले मौजूदा हालात बेहतर कहे जा सकते हैं।
छात्रों में एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के प्रति उत्साह नहीं होने के अनेक कारण गढ़े जा सकते हैं, जैसे-माता-पिता का पढ़ाई को लेकर दबाव बनाना, ऐसी गतिविधियों के लिए अच्छी सुविधाओं का अभाव और सबसे महत्वपूर्ण यह कि छात्र को लगता है कि ऐसा करना समय खराब करने जैसा है। ऐसी गतिविधियों में कम दिलचस्पी की एक और वजह पीसी कल्चर (कम्यूटर आधारित गेम्स) है। कुछ लोग कहते हैं कि उनके बच्चे कम्यूटर और टीवी से चिपके रहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों ही एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज की श्रेणी में नहीं आते हैं।
महात्रया रा-
महात्रया रा आध्यात्मिक गुरु हैं। वे देश-विदेश में अपने आध्यात्मिक व्याख्यानों के माध्यम से लोगों को सेल्फ रियलाइजेशन के लिए मार्गदर्शित करते हैं। उनके प्रभावी संदेश व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करके जीवन की दिशा बदल देते हैं। उनके व्याख्यान सुनकर कई प्रसिद्ध हस्तियां, बिजनेसमैन, स्पोटर्सपर्सन और स्टूडेंट़स अपनी आंतरिक ऊर्जा की मदद से नई ऊंचाइयां प्राप्त कर चुके हैं। महात्रया रा जीवन जीने का एक नया रास्ता बताते हैं – ‘इंफीनीथीज्म’, जिसके माध्यम से मनुष्य को अपनी असीम क्षमता का अहसास हो सकता है।
महात्रया रा आध्यात्मिक गुरु हैं। वे देश-विदेश में अपने आध्यात्मिक व्याख्यानों के माध्यम से लोगों को सेल्फ रियलाइजेशन के लिए मार्गदर्शित करते हैं। उनके प्रभावी संदेश व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करके जीवन की दिशा बदल देते हैं। उनके व्याख्यान सुनकर कई प्रसिद्ध हस्तियां, बिजनेसमैन, स्पोटर्सपर्सन और स्टूडेंट़स अपनी आंतरिक ऊर्जा की मदद से नई ऊंचाइयां प्राप्त कर चुके हैं। महात्रया रा जीवन जीने का एक नया रास्ता बताते हैं – ‘इंफीनीथीज्म’, जिसके माध्यम से मनुष्य को अपनी असीम क्षमता का अहसास हो सकता है।
इंफीनीमैगजीन-
इंफीनीमैगजीन प्रेरक कहानियों, उद्धरणों, विकासोन्मुख पोस्टरों और महान व्यक्तियों के विचारों से बनी है। दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने वाले अलग-अलग पृष्ठभूमि के महान लोगों और बिना कुछ बोले विपरीत हालात में महान ऊंचाइयां छूने वाले लोगों पर नियमित कॉलम्स हैं। यह मैगजीन पाठकों को विपरीत हालात से जूझने के लिए प्रेरित करती है। इंफीनीमैगजीन के माध्यम से महात्रया रा लोगों को अपनी पूरी क्षमता और वो ऊंचाइयां हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जहां तक वे अधिकारपूर्वक पहुंच सकते हैं।
जो छात्र ऐसी गतिविधियों में दिलचस्पी नहीं रखते उन्हें इन पहलुओं पर जरूर विचार करना चाहिए। ऐसी गतिविधियां उस तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभाती हैं जो आज स्कूल-कॉलेजों का नियमित हिस्सा बन गया है। ये गतिविधियां तब और महत्वपूर्ण साबित होंगी जब आप कॉरपोरेट सेक्टर में प्रवेश करेंगे। रोज-रोज के काम का दबाव आप अपनी इन पसंदीदा तरीकों से कम कर सकते हैं। ये गतिविधियां तनाव को दूर करने का आसान और बेहद कारगर तरीके हैं।
सामान्य स्कूलों के विपरीत, बिजनेस स्कूल और विदेशी स्कूल प्रवेश के दौरान छात्रों की इन गतिविधियों को बड़ा महत्व देते हैं। इन गतिविधियों में आगे रहने वाले छात्रों को यहां प्रवेश के दौरान इसका लाभ दिया जाता है। आजकल सभी कंपनियां, खासकर सॉफ्टवेयर कंपनियां आउटडोर कैंप और सामाजिक गतिविधियों पर काफी जोर देती हैं। इनका मानना है कि कम्यूटर के सामने घंटों बैठे रहने से होने वाला तनाव इनके जरिये प्रभावशाली ढंग से दूर किया जा सकता है।
बुद्धिमान लोग ऐसी गतिविधियों की तलाश में रहते हैं। उनके लिए ये गतिविधियां दोहरी खुशी लाती हैं। तनाव तो दूर करती ही हैं, कमाई भी हो जाती है। यानी, आम के आम, गुठलियों के दाम। जैसे कि कार्नेटिक म्यूजिक का क्षेत्र ऐेसे युवक-युवतियों से भरा पड़ा है, जिनका एकेडमिक कॅरियर भी कामयाब है। वे अब इस क्षेत्र में बखूबी दखल दे रहे हैं, लेकिन दुखद बात यह है कि बड़ी संख्या में छात्रों को गुमराह किया जा रहा है। उन्हें नंबर की रेस में खपाया जा रहा है और इस कारण वे छोटी सी उम्र में ही भारी तनाव के शिकार हो रहे हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि इस श्रेणी में सचिन तेंडुलकर को भी रखा जाना चाहिए। कम उम्र में ही जब उनके पैर में गंभीर चोट लगी तो लोगों को अचानक ही उनका भविष्य कम चमकदार लगने लगा था। जबकि किशोर या युवा को एकेडमिक और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के बीच सही संतुलन बनाने की जरूरत होती है। यदि कोई छात्र एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में अपना कॅरियर बनाना चाहता है तो उसे अपनी प्राथमिकता सही ढंग से तय करनी चाहिए। बिना योजना बनाए अपने आप को तनाव की रेस में शामिल करने की बजाय सही अनुपात में और सही दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
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