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Showing posts from January 7, 2015

कार्य और बेगार

एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बा की की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें . “ ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये .” “जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा . “मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये .” , ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला . कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा...

गांधी मात्र एक राजनैतिक मजबूरी का नाम

आज के संदर्भ में गांधी मात्र एक राजनैतिक मजबूरी का नाम है। आज स्थिति यह है कि भगवान को नकारा जा सकता है लेकिन गांधी को नहीं। मान लें कि pk फिल्म में शिव के स्थान पर कलाकार गांधी के रूप में होता और नायक के मन में यह बात होती कि गांधी ने आजादी दिलाई और मेरा रिमोट भी यही दिलाएंगे (सत्याग्रह से) तो कैसा दृश्य होता। फिल्म बोर्ड तक पास नहीं करता वह दृश्य। सारे काग्रेसी गांधी और गोडसे को लेकर अति असहिष्णु हैं। इस त्थ्य पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता कि गांधी के उभरने से अंग्रेजों को ह िन्दु-मुसलमान के बीच की खाई को चौड़ा करने वाला एक औजार मिल गया और तुष्टीकरण की नीति की नींव पड़ी। वास्तव में संघ की असली देन यह है कि इसने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना को संवैधानिक ढांचे भीतर पोषित किया और मरने नहीं दिया। दिशाहीन अतिवादी हिन्दु जो भी संघ से जुड़े (उन्हें संघ ही सबसे करीब वैचारिक संगठन लगा) उनकी अतिवादी धार को संघ ने कुंद कर दिया जिससे वे लोकतांत्रिक रास्ते पर चल कर अपने ध्येय को पहचान पाए (सेकुलर उकसाहटों के बावजूद)। जहां तक मानवीय मूल्यों का प्रश्न है, गांधी से कोई मतभेद का सवाल नहीं, वे गांधी...

दाऊद इब्राहीम तस्कर है या आतंकवादी ?

दाऊद इब्राहीम तस्कर है या आतंकवादी ? दो दिन पहले कोस्ट गार्ड के कमांडो ने समंदर में तस्कर मारे थे या आतंकवादी ? इस घटना को किस चश्मे से देखें ? धर्म निरपेक्षता के चश्मे से या साम्प्रदायिकता के चश्मे से ? इस पर अमित शाह की बात माने या अजय माकन की ? इस मसले पर इंडियन एक्सप्रेस की खबर पढ़े या इंडिया टीवी को सुने ? .............................................................................................. ये हाल है उस देश का जहाँ इतिहास के दो सबसे बड़े आतंकी हमले समंदर के रास्ते से किये गये हैं. 1993 के मुंबई सीरियल धमाकों में गोला बारूद कराची से समंदर के रास्ते नाव पर लाया गया था. इन धमाकों में हमारे देश के 350 लोग मारे गये और 1200 घायल हुए. 2008 में फिर मुंबई में आतंकी हमला हुआ जिसमे 164 लोग मारे गये और 308 घायल हुए.इस हमले में भी गोला बारूद कराची से समंदर के रास्ते आया था. आतंक के इसी रास्ते पर कोस्ट गार्ड को दो दिन पहले एक संदिग्ध नाव दिखी थी जिसके इंटरसेप्ट ख़ुफ़िया एजेंसियों ने पकडे थे. क्या उस नाव को रोकना चाहिय था ? सच ये है कि मुंबई धमाकों के 21 साल बाद ...पहली बार देश की तटीय...