"चौबीस घंटे की ड्यूटी, बदमाशों से निपटने का दबाव, त्योंहार भी कभी अपने परिवार के साथ नहीं मना पाते आदि आदि" ऐसी है हमारे पुलिसवालों की ज़िंदगी। इतना दबाव और शिद्दत से नौकरी करने के बाद भी बहुत कम देखने को मिलता है कि कभी किसी ने इनको दुआ दी हो। क्यों भाई क्या इनके दिल नहीं होता ? हमारे देश में तमाम ऐसी मुठभेड़ हुई हैं पुलिस और बदमाशों के बीच जिनका खूब हो हल्ला मचा है लेकिन एक भी ऐसी मुठभेड़ नहीं है जिसमे कोई पुलिस की तरफ से बोलने वाला हो चाहे इशरत जहाँ का मामला या म.प. में नौ सिमी आतंकियों को मारने का मामला। कभी खड़ा नहीं हुआ इनके लिए। सब जानते थे कि मध्य प्रदेश में सभी नौ के नौ हार्डकोर आतंकी थे पर नहीं ऊँगली पुलिस वालो पर ही उठेगी। तमाम ऐसे संघठन हैं जो समाज के लिए काम करते हैं जैसे मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग, भ्र्ष्टाचार निरोधक तंत्र इत्यादि। जो शायद आपने काम बखूबी निभा भी रहे होंगे। लेकिन अगर बात पुलिस की आती है तो सब हाबी हो जाते हैं। एक अपराधी जो पिछले कई सालों से अपराध की दुनिया में है। जिसके लिए अपराध कोई मनोरंजन का साधन है। कई हत्या कर चुका है यदि वो ...