गुजरात के चुनाव ने भारतीय राजनीति में संवाद के स्तर को काफी नीचे गिरा दिया है। इसका कारण यह भी है कि यह सिर्फ एक प्रांत का चुनाव नहीं है बल्कि यह अगले संसदीय चुनाव का पूर्व रूप है। भाजपा और कांग्रेस के भविष्य को यह चुनाव ही तय करेगा। एक पार्टी ने हार के डर से और दूसरी पार्टी ने जीत के उन्माद में बहकर लोकतंत्र की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है। संवैधानिक पदों का निष्कलंक निर्वाह करने वाले कई लोगों के आचरण पर आक्षेप तो लगाए ही गए हैं, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी कीचड़ उछालने में कोई कमी नहीं रखी गई है। इस चुनाव में कोई भी जीते या हारे, देश के नागरिक आशा करेंगे कि यह कटुता गुजरात के चुनाव के साथ-साथ समाप्त हो जाएगी। भारत का एक पूर्व प्रधानमंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री से माफी मांगने को कहे, यह अपने आप में एक खबर है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा क्या कर दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने उन्हें माफी मांगने के लिए कह दिया। ऐसी क्या बात हुई कि मौनी बाबा को मौन तोड़कर दहाड़ लगानी पड़ी? बात सचमुच ऐसी ही हुई है कि जिससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा...