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Showing posts from 2017

महंगाई क्यूँ न बढे ?

दोस्तों, महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिसके लिए हम सरकारों को दोषी ठहराते आ रहे हैं। पर क्या कभी सोचा है इसके लिए हमारी जीवन दोषी है। हम जिस प्रकार पाश्चात्य संस्कृति का अनुशरण कर रहे हैं वो न सिर्फ हमारी पुरातन संस्कृति के लिए बल्कि वो हमारे धन और जीवन दोनों को नुकशान पहुंचा रही है। कुछ कारण जो मेरी नजर में हैं वो में बता रहा हूँ। आजकल नहाने का साबुन अलग मिलेगा और हाथ धोने का साबुन अलग। पहले तो साबुन ही नहीं था।  था भी तो केवल नहाने का।  हाथ धोने के लिए राख या साफ़ मिटटी इस्तेमाल करते थे और कम से कम बीमार होते थे। टॉयलेट साफ़ करने का हार्पिक अलग और बाथरूम धोने का अलग। और हाँ टॉयलेट में खुशबू वाली टिकिया अलग से मिलेगी। क्यों भाई एसिड में क्या दिक्कत है। कपडे धोने के लिए तीन तरह के वाशिंग पॉवडर होने जरूरी हैं।  एक मशीन से धोने के लिए , एक हाथ से धोने के लिए और एक कपड़ों पर कोई दाग है तो वेनिश। पहले तो एक से ही काम चला लेते थे। उससे पहले केवल पानी से ही साफ करते थे। हाथ धोने के लिए भी लिक्विड आने लगे हैं क्यूंकि विज्ञापन वाले बोलते हैं कि साबुन से बैक्टीरिआ ट्रा...

पुलिस वाले की ज़िंदगी

"चौबीस घंटे की ड्यूटी, बदमाशों से निपटने का दबाव, त्योंहार भी कभी अपने परिवार के साथ नहीं मना पाते आदि आदि" ऐसी है हमारे पुलिसवालों की ज़िंदगी। इतना दबाव और शिद्दत से नौकरी करने के बाद भी बहुत कम देखने को मिलता है कि कभी किसी ने इनको दुआ दी हो। क्यों भाई क्या इनके दिल नहीं होता ? हमारे देश में तमाम ऐसी मुठभेड़ हुई हैं पुलिस और बदमाशों के बीच जिनका खूब हो हल्ला मचा है लेकिन एक भी ऐसी मुठभेड़ नहीं है जिसमे कोई पुलिस की तरफ से बोलने वाला हो चाहे इशरत जहाँ का मामला या म.प. में नौ सिमी आतंकियों को मारने का मामला।  कभी खड़ा नहीं हुआ इनके लिए। सब जानते थे कि मध्य  प्रदेश में सभी नौ के नौ हार्डकोर आतंकी थे पर नहीं ऊँगली पुलिस वालो पर ही  उठेगी। तमाम ऐसे संघठन हैं जो समाज के लिए काम करते हैं जैसे मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग, भ्र्ष्टाचार निरोधक तंत्र इत्यादि। जो शायद आपने काम बखूबी निभा भी रहे होंगे। लेकिन अगर बात पुलिस की आती है तो सब हाबी हो जाते हैं। एक अपराधी जो पिछले कई सालों से अपराध की दुनिया में है।  जिसके लिए अपराध कोई मनोरंजन का साधन है। कई हत्या कर चुका है यदि वो ...

कैसे 2जी घोटाले के फैसले से निकला प्रॉसिक्यूशन घोटाला

‘‘यह सरकारी दस्तावेजों की मिस रीडिंग, सिलेक्टिव रीडिंग, नॉन-रीडिंग और आउट ऑफ कन्टैक्स्ट रीडिंग है ।" - जज ओपी सैनी, 2जी घोटाले में सीबीआई, प्रॉसिक्यूशन पर 2जी फैसले से हैरान समूचा राष्ट्र इसे सरल रूप से समझना चाहता है। किन्तु कानून और न्याय की उलझी, जटिल भाषा, प्रक्रिया और तरीके आसान नहीं हैं। फिर भी एक प्रयास। क्या सारे आरोपी नेता, अफ़सर, पूंजीपति सुबूतों-गवाहों के अभाव में छोड़ दिए गए हैं? - हां। क्या कोर्ट ने इन्हें ‘बेनिफिट ऑफ डाउट’ देकर छोड़ा है? - नहीं। फिर? - अन्य मुकदमों से हटकर है इसीलिए यह केस। कोर्ट ने सुबूत-गवाह पेश न कर पाने पर सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई है। किन्तु फैसले के कई बिन्दु बताते हैं कि वह संदेह का लाभ नहीं दे रही। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि कोई घोटाला हुआ ही नहीं। समूचे प्रॉसिक्यूशन को कोर्ट ने बुरी तरह लताड़ा है। वास्तव में देखा जाए तो 2जी घोटाला, निश्चित ही घोटाला था। आने वाले समय में ऊंची अदालतों में सबकुछ सामने आएगा। किन्तु इस मुकदमें में यह प्रॉसिक्यूशन घोटाला बनकर सामने आया है। कैसे? एक-एक कर देखते हैं : जो सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष फैस...

फारुख साहब क्या साबित करना चाहते हो?

"फारुख अब्दुल्ला " से सब वाक़िफ़ हैं। ये जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं।  वर्तमान में ये नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया हैं। अब बात करते हैं इनके बयानों की जो कुछ दिनों से अपने अजीबो गरीब मायनो से शर्मनाक बयान बन गए हैं। कभी ये महाशय कहते हैं जम्मू-कश्मीर में कोई तिरंगा थामने वाला नहीं मिलेगा, , P.O.K.  को आज़ाद कश्मीर बोल देते हैं। अभी गुजरात चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद बोला "हिंदुस्तान ख़त्म हो जायेगा" .   क्या साहब , क्या साबित करना चाहते हो ? क्या आप दूसरा जिन्ना बनना चाहते हो ? आप छुप कर अलगाव वादियों की भाषा बोलते थे अब खुल कर खड़े होना चाहते हो क्या ? या कुर्सी जाने के गम में मानसिक संतुलन गड़बड़ा दिए हो ? हिंदुस्तान किसी राजनेता की कुर्सी नहीं जो खत्म हो जायेगा। ये युगों युगों से था और युगों युगों तक रहेगा भी। आपके जैसे किसी एक शख्स के कह देने मात्र से कुछ नहीं होने वाला। डेमोक्रेसी में विरोध किया जाना चाहिए पर क्या इस तरह से ? आप बीजेपी या मोदी के विरोधी हो सकते हो तो विरोध करो पर राष्ट्र विरोधी क्यों बन रहे हो। जिन्ना के पद...

शिक्षक

दोस्तों, हमारे यहाँ गुरु का स्थान बहुत बड़ा है। परन्तु गुरु ही अपने कर्तव्य से भटक जाये तो क्या समाज का निर्माण हो पायेगा? शिक्षक को माँ-बाप अपने बेटा-बेटी को सौंप देते हैं, इस उम्मीद में कि ये हमारे बच्चे को नैतिक व्यवहार करना सिखाएंगे परन्तु जब वो शिक्षक खुद ही अनैतिक कार्यों में लिप्त तो ? वैसे किसी भी इंसान या यूँ कहे प्राणी की पहली गुरु उसकी माता होती है। दोस्तों किसी भी देश का निर्माण उस देश के शिक्षकों के हाथ में होता है। यदि शिक्षक अपने नैतिक मूल्यों से भटक जायेगा तो राष्ट्र का पतन निश्चित है और यदि शिक्षक अपने कर्तव्य का निर्वहन पूर्ण निष्ठा के साथ कर रहा है तो उस राष्ट्र के निर्माण को कोई नहीं रोक सकता। भूत काल में अनेकों ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपने नैतिक मूल्यों से अपने शिष्य महान बनाया है।  जैसे आचार्य चाणक्य, माता जीजा बाई आदि। आज कल जयादातर शिक्षक अपने कर्तव्य से बहक गए हैं। आपने देखा होगा सरकारी विद्यालय किस हाल में हैं ? सरकार से बराबर अनुदान प्राप्त होने के बावजूद भी जयादातर विद्यालय दयनीय हालत में हैं। इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या वो सरकार जिसने अनुदान द...

ये कैसा न्याय

दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में "वसुदैव कुटुंबकम"  की धारणा हमारे ग्रंथों में बताई गयी है। मुस्लिम धर्म में भी प्रेम और भाई चारे का पथ पढ़ाया जाता है। फिर क्यों रामायण पर बात करने वाले मिल जाते हैं ? कुरान-ए-शरीफ, शरीयत पर बात करने वाला कोई नहीं मिलता ? हमने क्यों बाबर, अकबर, औरंगजेब को याद रखा और दाराशिकोह को भुला दिया ? हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि औरंगजेब, बाबर आतातायी थे, इन्होने मंदिर तोड़े, जबरन धर्म परिवर्तन करवाए, बलात्कार किये फिर क्यों दिल्ली में औरंगजेब रोड है, अकबर रोड है, बाबर रोड है पर दाराशिकोह रोड नहीं है ?  क्यूंकि इन्होने तमाम धर्म ग्रंथों का दूसरी भाषाओँ में अनुवाद किया ?   क्यों राम जन्म भूमि पर चर्चा  होती है क्या कभी किसी ने मुहम्मद साहब की कब्र पर चर्चा की है या कोई बताएगा की उनकी कब्र कहाँ है? शायद अपने आपको धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिए क्यूंकि हिन्दुस्तान में किसी को खुश करने के लिए जो बोला जाये उसे हमने नाम दे दिया धर्मनिरपेक्षता। आप झूट बोलिये सच को छुपाओ और नाम दे दो धर्मनिरपेक्षता।  कोई बताएगा दाराशिकोह रोड दिल्ली में क्यों नहीं है ? क...

गुजरात चुनाव में किसने मर्यादा भंग नहीं की?

गुजरात के चुनाव ने भारतीय राजनीति में संवाद के स्तर को काफी नीचे गिरा दिया है। इसका कारण यह भी है कि यह सिर्फ एक प्रांत का चुनाव नहीं है बल्कि यह अगले संसदीय चुनाव का पूर्व रूप है। भाजपा और कांग्रेस के भविष्य को यह चुनाव ही तय करेगा। एक पार्टी ने हार के डर से और दूसरी पार्टी ने जीत के उन्माद में बहकर लोकतंत्र की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है। संवैधानिक पदों का निष्कलंक निर्वाह करने वाले कई लोगों के आचरण पर आक्षेप तो लगाए ही गए हैं, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी कीचड़ उछालने में कोई कमी नहीं रखी गई है। इस चुनाव में कोई भी जीते या हारे, देश के नागरिक आशा करेंगे कि यह कटुता गुजरात के चुनाव के साथ-साथ समाप्त हो जाएगी। भारत का एक पूर्व प्रधानमंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री से माफी मांगने को कहे, यह अपने आप में एक खबर है। वर्तमान प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने ऐसा क्या कर दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ.  मनमोहन सिंह  ने उन्हें माफी मांगने के लिए कह दिया। ऐसी क्या बात हुई कि मौनी बाबा को मौन तोड़कर दहाड़ लगानी पड़ी? बात सचमुच ऐसी ही हुई है कि जिससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा...

यह विरोध गलत

नगर निकाय चुनाव में विजयी प्रत्याशियों के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मेरठ और अलीगढ़ में वंदे मातरम को लेकर खूब हंगामा हुआ। मेरठ में तो वंदे मातरम गान के समय नवनिर्वाचित महापौर जहां अपनी कुर्सी तक से नहीं उठीं वहीं उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी भी की। अलीगढ़ में बवाल इतना बढ़ा कि महापौर की गाड़ी पर पथराव तक हो गया। पुलिस ने किसी तरह भीड़ को तितर-बितर कर समारोह सम्पन्न करवाया। इस तरह बीता था शहर की सरकार का पहला दिन। वंदे मातरम का विरोध ठीक नहीं। देश बड़ा होता है। वंदे मातरम को विरोध का माध्यम बनाना उचित नहीं कहा जा सकता। इससे समाज में सद्भाव की खाई और चौड़ी होगी। राजनेताओं को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सबसे पहले राष्ट्र के बारे में विचार करने की जरूरत है। यह बहुत अच्छी बात है कि विवाद के अगले ही दिन बसपा प्रमुख ने वंदे मातरम को अपना समर्थन दे दिया। इससे उनकी पार्टी में सकारात्मक संदेश जाएगा और कार्यकर्ता भी आइंदा राष्ट्रीय मुद्दों पर संयम बरतेंगे। परंतु इस प्रकरण का दूसरा पक्ष भी है। यह चिंता वाजिब है कि पक्ष-विपक्ष में जब पहले ही दिन इतनी कड़वाहट हो गई तो शहर के विकास कार...

"गाय की दुर्दशा"

"गौ माता"   ये वो शब्द हैं जिनमें गाय के लिए सम्मान दिखाई देता है.  परन्तु क्या ये शब्द बोलने से या लिखने से ही हम गाय को सम्मान दे रहे हैं?  गौ रक्षा के लिए तमाम संस्थाएँ काम कर रही हैं। जिनका काम गौ को तस्करों से बचाना है और सुरक्षित गौशालाओं तक पहुँचाना है. जो शायद अपना काम कर भी रही हैं। परन्तु क्या गौ माता  पर केवल तस्करों का ही खतरा है ? 'नहीं' गौ माता को तस्करों से इतना खतरा नहीं है जितना खतरा हमारी कृतघ्ना से है।  जिस दिन हम गौ माता के उपकारों की क़द्र करना शुरू कर देंगे उसी दिन गौ माता की सुरक्षा के लिए न किसी गौ रक्षा दल की जरुरत पड़ेगी और न ही किसी गौशाला की। लेकिन हम इतने कृतघ्न हो गए हैं जब जन्म देने वाली माँ का उपकार नहीं मानते तो गौ माता का उपकार कैसे मान सकते हैं ? जब मशीन नहीं होती थी तो गौ पुत्र ही थे जो हमारे मददगार थे मशीन आते ही हम  भूल गए। और छोड़ दिया आवारा नाम मिला सांड।  अरे यार तुमने भी दूध पिया है उसकी माँ का इस नाते रिश्ता भी बनता है। दूध पिया जब दूध  देना बंद कर दिया तो खाना देना ही बंद कर दिया। फिर भगा दिया द...

मोदी जी, देश के प्रधानमन्त्री के तौर पर ऐसी बातें आपको शोभा नहीं देतीं

गजब चल रहा है साब! आदमी प्रधानमंत्री है. उसे मालूम चलता है कि एक दुश्मन देश का एक ‘नीच आदमी’ आकर विपक्षियों के साथ बैठकर मीटिंग कर रहा है और ये उस बात को रैली में जाकर, दुनिया को ...