"फारुख अब्दुल्ला " से सब वाक़िफ़ हैं। ये जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। वर्तमान में ये नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया हैं। अब बात करते हैं इनके बयानों की जो कुछ दिनों से अपने अजीबो गरीब मायनो से शर्मनाक बयान बन गए हैं। कभी ये महाशय कहते हैं जम्मू-कश्मीर में कोई तिरंगा थामने वाला नहीं मिलेगा, , P.O.K. को आज़ाद कश्मीर बोल देते हैं। अभी गुजरात चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद बोला "हिंदुस्तान ख़त्म हो जायेगा" .
क्या साहब , क्या साबित करना चाहते हो ?
क्या आप दूसरा जिन्ना बनना चाहते हो ?
आप छुप कर अलगाव वादियों की भाषा बोलते थे अब खुल कर खड़े होना चाहते हो क्या ?
या कुर्सी जाने के गम में मानसिक संतुलन गड़बड़ा दिए हो ?
हिंदुस्तान किसी राजनेता की कुर्सी नहीं जो खत्म हो जायेगा। ये युगों युगों से था और युगों युगों तक रहेगा भी। आपके जैसे किसी एक शख्स के कह देने मात्र से कुछ नहीं होने वाला।
डेमोक्रेसी में विरोध किया जाना चाहिए पर क्या इस तरह से ? आप बीजेपी या मोदी के विरोधी हो सकते हो तो विरोध करो पर राष्ट्र विरोधी क्यों बन रहे हो। जिन्ना के पद चिन्हों पर चल रहे हो क्या ?
अरे इतना एहशान फरामोशी ? जिस राष्ट्र ने आपको इतना सम्मान दिया , एक राज्य का मुख्यमंत्री बनाया , केंद्र सरकार में मंत्रालय दिया , सबसे बड़ा आपके ऊपर भरोसा किया उसके बारे में आपके ये विचार ?
आप किसी एक विचार धारा के विरुद्ध जा सकते हो , किसी इंसान के विरुद्ध जा सकते हो लेकिन आप तो राष्ट्र के विरुद्ध जा रहे हो। जिसे बर्दास्त नहीं किया जाना चाहिए। जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री के फोटो से विवाह करने पर किसी औरत को जेल हो सकती है और उस पर राजद्रोह का मुकदमा किया सकता है तो इनके ऊपर क्यों नहीं ? क्या वो इसलिए एक वर्ग का वोट नहीं मिलेगा या खिसक सकता है ? प्रधानमंत्री जी के खिलाफ बोलने वाले को जेल हो सकती है लेकिन देश के खिलाफ बोलने वाले फ़ारूक़ और आज़म खान को नहीं।
मोदी सरकार आने के बाद कश्मीर में बहुत कुछ बदला है। ओपरेशन क्लीन जैसी कार्यवाहिओं ने आतंकिओं की कमर तोड़ दी है जो बहुत जरुरी भी था। दूसरा काम N. .I. . A. ने अलगाव वादियों पर कार्यवाही करके दिखा दिया। तो लगता है इनका बहुत बड़ा वोट बैंक इनसे छिटक गया है या इनका वोट बैंक दबाव में आ गया है और ये अपने वोट बैंक की दुर्गति नहीं देख सकते। इसलिए ऊल जुलूल कुछ भी बोले जा रहे हैं।
यहाँ ये समझना जरूरी है कि आपके बोलने न बोलने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता हिंदुस्तान पर पर जिम्मेदारों की चुप्पी से हमारे जैसों पर जरूर फ़र्क़ पड़ेगा।
कोई कुछ भी बोल देगा क्या "एक साहब आते हैं भारत माँ को डायन बोल देते हैं " एक साहब ताज महल को भी ले जायेंगे , लाल किले को भी ले जायेंगे और पता नहीं क्या क्या बोल जाते हैं। एक और जो अपने आपको छात्र नेता बोलते हैं कन्हैया कुमार फ़ौज को बलात्कारी बोलते हैं बोलते हैं कितने अफ़ज़ल मारोगे हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा। जिसका कहते हो उसी के बारे में।
क्या साहब , क्या साबित करना चाहते हो ?
क्या आप दूसरा जिन्ना बनना चाहते हो ?
आप छुप कर अलगाव वादियों की भाषा बोलते थे अब खुल कर खड़े होना चाहते हो क्या ?
या कुर्सी जाने के गम में मानसिक संतुलन गड़बड़ा दिए हो ?
हिंदुस्तान किसी राजनेता की कुर्सी नहीं जो खत्म हो जायेगा। ये युगों युगों से था और युगों युगों तक रहेगा भी। आपके जैसे किसी एक शख्स के कह देने मात्र से कुछ नहीं होने वाला।
डेमोक्रेसी में विरोध किया जाना चाहिए पर क्या इस तरह से ? आप बीजेपी या मोदी के विरोधी हो सकते हो तो विरोध करो पर राष्ट्र विरोधी क्यों बन रहे हो। जिन्ना के पद चिन्हों पर चल रहे हो क्या ?
अरे इतना एहशान फरामोशी ? जिस राष्ट्र ने आपको इतना सम्मान दिया , एक राज्य का मुख्यमंत्री बनाया , केंद्र सरकार में मंत्रालय दिया , सबसे बड़ा आपके ऊपर भरोसा किया उसके बारे में आपके ये विचार ?
आप किसी एक विचार धारा के विरुद्ध जा सकते हो , किसी इंसान के विरुद्ध जा सकते हो लेकिन आप तो राष्ट्र के विरुद्ध जा रहे हो। जिसे बर्दास्त नहीं किया जाना चाहिए। जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री के फोटो से विवाह करने पर किसी औरत को जेल हो सकती है और उस पर राजद्रोह का मुकदमा किया सकता है तो इनके ऊपर क्यों नहीं ? क्या वो इसलिए एक वर्ग का वोट नहीं मिलेगा या खिसक सकता है ? प्रधानमंत्री जी के खिलाफ बोलने वाले को जेल हो सकती है लेकिन देश के खिलाफ बोलने वाले फ़ारूक़ और आज़म खान को नहीं।
मोदी सरकार आने के बाद कश्मीर में बहुत कुछ बदला है। ओपरेशन क्लीन जैसी कार्यवाहिओं ने आतंकिओं की कमर तोड़ दी है जो बहुत जरुरी भी था। दूसरा काम N. .I. . A. ने अलगाव वादियों पर कार्यवाही करके दिखा दिया। तो लगता है इनका बहुत बड़ा वोट बैंक इनसे छिटक गया है या इनका वोट बैंक दबाव में आ गया है और ये अपने वोट बैंक की दुर्गति नहीं देख सकते। इसलिए ऊल जुलूल कुछ भी बोले जा रहे हैं।
यहाँ ये समझना जरूरी है कि आपके बोलने न बोलने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता हिंदुस्तान पर पर जिम्मेदारों की चुप्पी से हमारे जैसों पर जरूर फ़र्क़ पड़ेगा।
कोई कुछ भी बोल देगा क्या "एक साहब आते हैं भारत माँ को डायन बोल देते हैं " एक साहब ताज महल को भी ले जायेंगे , लाल किले को भी ले जायेंगे और पता नहीं क्या क्या बोल जाते हैं। एक और जो अपने आपको छात्र नेता बोलते हैं कन्हैया कुमार फ़ौज को बलात्कारी बोलते हैं बोलते हैं कितने अफ़ज़ल मारोगे हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा। जिसका कहते हो उसी के बारे में।
हरेंद्र सिंह चौधरी
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