गजब चल रहा है साब! आदमी प्रधानमंत्री है. उसे मालूम चलता है कि एक दुश्मन देश का एक ‘नीच आदमी’ आकर विपक्षियों के साथ बैठकर मीटिंग कर रहा है और ये उस बात को रैली में जाकर, दुनिया को बताकर उनसे वोट मांगता है. ऐसा कौन करता है? एक तरफ देश के खिलाफ साजिश रची जा रही और ये उस पर कार्रवाई न करते हुए उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा है.
देश के प्रधानमंत्री की सुपारी दी जा रही है और एक समूह विशेष एक राज्य में अपनी सरकार बनाकर उससे निपटने की सोच रहा है. क्यों भाई? वहां क्या कोई डंडा रखा है, जिससे आप सुपारी लेने-देने वालों को पीटेंगे और वो डंडा आपके सरकार बनाने के बाद ही आपके हाथ लगेगा?
अचानक सब कुछ सफेद-काले में होने लगा. या तो सफेद या काला. मंदिर या मस्ज़िद. हिंदू या मुसलमान. औरंगज़ेब या राम. बाबर या राम. बीच-बीच में भीम स्वादानुसार. अचानक कही हुई बातें याद आने लगीं. ‘दलित मां का बेटा हूं’ कहकर झोली फैलाने वाला खुद को फकीर कहने लगा. फिर कहता है कि सूट-बूट पहनता हूं, इसलिए उनसे हजम नहीं होता.
या तो आप फकीर हैं या सूट-बूट पहनते हैं. दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते. उसके लिए शक्तिमान-गंगाधर जैसा होना पड़ता है. मैं कहता हूं कि एक आदमी किराए पर रखा जाए, जो जब (फकीर बने) साहिब झोला उठाकर चलने वाले हों, तो उन्हें याद दिला दे कि नाम से सने सूट को भी तो उतारकर रख दें. क्या है कि सूट पहनने वाले फकीर नहीं होते.
देश में इन्हीं के खिलाफ साज़िश रची जा रही है. ये उसे रैली में गा रहे हैं. ये वही हैं, जिन्होंने नोटबंदी के दौरान एक वीडियो के बारे में रैली में कहा था, ‘मुझे मालूम नहीं ये वीडियो कितना सच है और कितना झूठ, लेकिन वॉट्सऐप पर खूब चल रहा है…’ ऐसे सेवक से डरिए. उसके आसपास चार आदमी रखिए. चौबीस घंटा. वॉट्सऐप पर किसी दिन अपनी मौत की अफवाह पढ़कर पंखे से न लटक जाए.
इन्हें मारने की साज़िश न मालूम कबसे और कितने लोग कर रहे हैं. इंजीनियरिंग कॉलेजों के बाहर सिगरेट के साथ स्वीटी सुपारी इतनी नहीं बिकी, जितनी इनकी सुपारी दी जा चुकी है. और ये हैं कि प्रधानमंत्री पद के नॉमिनेशसन के वक्त कहते फिर रहे थे कि ‘नॉमिनेशन की खबर मात्र से पाकिस्तान कांप रहा है’ . गजब कंपाई है साहिब! कांप भी रहा है, आपकी सुपारी भी ले रहा है, आपको मालूम भी है और आप उसी की शह पर वोट मांग रहे हैं.
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