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"गाय की दुर्दशा"

"गौ माता"   ये वो शब्द हैं जिनमें गाय के लिए सम्मान दिखाई देता है.  परन्तु क्या ये शब्द बोलने से या लिखने से ही हम गाय को सम्मान दे रहे हैं?
 गौ रक्षा के लिए तमाम संस्थाएँ काम कर रही हैं। जिनका काम गौ को तस्करों से बचाना है और सुरक्षित गौशालाओं तक पहुँचाना है. जो शायद अपना काम कर भी रही हैं। परन्तु क्या गौ माता  पर केवल तस्करों का ही खतरा है ?

'नहीं' गौ माता को तस्करों से इतना खतरा नहीं है जितना खतरा हमारी कृतघ्ना से है।  जिस दिन हम गौ माता के उपकारों की क़द्र करना शुरू कर देंगे उसी दिन गौ माता की सुरक्षा के लिए न किसी गौ रक्षा दल की जरुरत पड़ेगी और न ही किसी गौशाला की। लेकिन हम इतने कृतघ्न हो गए हैं जब जन्म देने वाली माँ का उपकार नहीं मानते तो गौ माता का उपकार कैसे मान सकते हैं ?
जब मशीन नहीं होती थी तो गौ पुत्र ही थे जो हमारे मददगार थे मशीन आते ही हम  भूल गए।
और छोड़ दिया आवारा नाम मिला सांड।  अरे यार तुमने भी दूध पिया है उसकी माँ का इस नाते रिश्ता भी बनता है।
दूध पिया जब दूध  देना बंद कर दिया तो खाना देना ही बंद कर दिया। फिर भगा दिया दर दर की ठोकर खाने को साथ में दुत्कार भी। भाई इंतज़ार तो करता कुछ दिन बाद फिरसे दूध देगी।
इसके बाद गाय तस्करों के निशाने पर  आ जाती है और तस्करी करने के लिए हर हथकंडा अपनाने के लिए तैयार रहते हैं।  उन्हें किसी की हत्या करने से भी परहेज नहीं चाहे वो गौरक्षक हों या पुलिस या फिर गौ मालिक।  हमारे गौ रक्षक भाई अपनी जान दांव पर लगाकर गऊ को बचाते हैं इसमें उन्हें पुलिस का भी सहयोग मिलता है।  अगर आत्मरक्षा में कोई गौतस्कर मारा जाये तो राजनीती शुरू हो जाती है। जैसा कि पहलु खान (जो गौरक्षक दल से भिड़ंत में मारा गया) और मेवात के युवक रहीश(जो पुलिस से मुठभेड़ में मरा) के  मामले में हुआ। जबकि दूसरी ओर गाय की रक्षा में मरने वालों के साथ कोई खड़ा नहीं होता चाहे वो रामपुर का अली हो, मप्र के फैज़ खान हों या मथुरा के होमगार्ड।
ऐसा किस लिए ? इनके लिए तो प्रधान मंत्री भी बोलते हैं कि गौरक्षको की गुंडागर्दी नहीं चलेगी। भाई किसी के प्राण बचाना क्या कोई अपराध है ?
हमने गौ माता को धर्म से जोड़ रखा है जो सरासर गलत है हमारे समाज में बहुत से हिन्दू मिल जायेंगे जो गौतस्करी में शामिल हैं। गाय पालने वाले जो दूध पी कर छोड़ देते हैं आवारा वो भी हिन्दू हैं जो सजा के हक़दार हैं।
वो गौशाला भी गुनहगार हैं जो अनुदान लेने के लिए खुली हैं जैसे जयपुर और छत्तीसगढ़ में हुआ है।

और हमारे समाज में ऐसे मुष्लिम भाई जो गाय की क़द्र करते हैं जैसे फैज़ खान।
गऊ को दुर्दशा से बचाने के लिए सबसे पहले धर्म से अलग करना पड़ेगा। हिन्दुओं को अपने मुष्लिम भाइयों को समझाना पड़ेगा कि गाय की पूजा क्यों करते हैं ?
वैसे ऐसे मुष्लिम भाई भी कम नहीं जो गाय को पूजते हैं।
वो इसलिये क्युकी वो गाय के वैज्ञानिक महत्व्य को समझ चुके हैं। हमें यही समझने की जरूरत है। हमें समझने की जरूरत है कि गाय गुणों की खान हैं। उसके एह्शानों को मानने की जरुरत है।
इसका गोबर , मूत्र सबकुछ उपयोगी है। ये ही समझने की जरूरत है।
बहुत से ऐसे असाध्य रोगों का इलाज़ इसके दूध और मूत्र से संभव है जबकि इसका मांस स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है।
अगर गौमाता को कत्लखानों में जाने से बचाना है तो ये समझाना पड़ेगा।
जय गऊ माता की।

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