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शिक्षक

दोस्तों, हमारे यहाँ गुरु का स्थान बहुत बड़ा है। परन्तु गुरु ही अपने कर्तव्य से भटक जाये तो क्या समाज का निर्माण हो पायेगा? शिक्षक को माँ-बाप अपने बेटा-बेटी को सौंप देते हैं, इस उम्मीद में कि ये हमारे बच्चे को नैतिक व्यवहार करना सिखाएंगे परन्तु जब वो शिक्षक खुद ही अनैतिक कार्यों में लिप्त तो ?
वैसे किसी भी इंसान या यूँ कहे प्राणी की पहली गुरु उसकी माता होती है।
दोस्तों किसी भी देश का निर्माण उस देश के शिक्षकों के हाथ में होता है। यदि शिक्षक अपने नैतिक मूल्यों से भटक जायेगा तो राष्ट्र का पतन निश्चित है और यदि शिक्षक अपने कर्तव्य का निर्वहन पूर्ण निष्ठा के साथ कर रहा है तो उस राष्ट्र के निर्माण को कोई नहीं रोक सकता।
भूत काल में अनेकों ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपने नैतिक मूल्यों से अपने शिष्य महान बनाया है।  जैसे आचार्य चाणक्य, माता जीजा बाई आदि।
आज कल जयादातर शिक्षक अपने कर्तव्य से बहक गए हैं। आपने देखा होगा सरकारी विद्यालय किस हाल में हैं ? सरकार से बराबर अनुदान प्राप्त होने के बावजूद भी जयादातर विद्यालय दयनीय हालत में हैं। इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या वो सरकार जिसने अनुदान दिया या वो शिक्षक जिसकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है उस अनुदान का सही इस्तेमाल करने की ? निशन्देह शिक्षक। ऐसा इसलिए की शिक्षक अपने नैतिक मूल्यों को भूल चुके हैं , वो अपने आप की पहचान  खो चुके हैं और इसका मुख्य कारण उनका अपने गुरु या शिक्षक के प्रति सम्मान की कमी एक वजह हो सकती है। ये बात मै इसलिए कह रहा हूँ क्युकी शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार अपना घर बना चुका है।  अभी आगरा विश्व विध्यालय की 4570 बी.एड की डिग्रीयां ही फर्जी पायी गयी हैं जो केवल एक साल का डाटा है और जिनसे 4570 लोग सरकारी विद्यालयों में नौकरी पा चुके हैं।  तो ये लोग क्या शिक्षा देंगे कि फर्जी डिग्री बनवा लो ? या परीक्षा में नक़ल करके पास हो जाओ ? क्युकि गुरु तो इन्होने देखा ही नहीं तो नैतिक मूल्यों की जानकारी तो इन्हें हो नहीं सकती। ऐसे ही तमाम लोग होंगे जो नक़ल करके परीक्षा पास करके आये होंगे और अब अध्यापन का कार्य कर रहे  होंगे।  कुछ निजी विद्यालय तो बाकायदा ठेके पर नक़ल करवाते हैं। क्या शिक्षा देंगे ऐसे विद्यालय ?
हमारे देश की राजनीति इतनी भ्र्ष्ट हो चुकी है कि इसने शिक्षा जैसे पवित्र स्थान को भी नहीं छोड़ा।
 श्री पाठक जी एक आदर्श शिक्षक हैं जिन्होंने शिक्षा व्यवस्था को बदलने की ठानी और उच्च न्यायलय इलाहबाद में याचिका डाली कि सरकारी नौकर शाहों के बच्चे सिर्फ सरकारी विद्यालय में ही पढ़ेंगे और न्यायालय ने उनके पक्ष  में फैसला दे भी दिया परन्तु दुर्भाग्य गन्दी राजनीति ने उस फैसले को ही बदल दिया और पाठक जी को उठा कर विभाग से बाहर कर दिया।
हमें इस व्यवस्था को बदलना पड़ेगा और अकेला कोई नहीं बदल सकता।
अगर ये व्यवस्था नहीं बदली तो हम इसी प्रकार ठगे जाते रहेंगे।  हमारे बच्चे नैतिक मूल्यों से वंचित रहेंगे क्यूंकि इस व्यवस्था से सरकारी विद्यालय तो दयनीय स्तिथि से बाहर आएंगे नहीं और निजी विद्यालय यूँही ठगते रहेंगे।
जब पढ़ने वाले की परीक्षा हो सकती है तो पढ़ाने वाले की क्यों नहीं (आज के संधर्व में जब फर्जी डिग्री वाले और नक़ल वाले या घूंस देकर नौकरी पाने वाले पकडे जा रहे हैं) इससे शिक्षक की काबिलियत भी पता चलती रहेगी और ऐसे फर्जी डिग्री जैसे घोटाले नहीं होंगे। जिसने वास्तव में शिक्षा ग्रहण की होगी वही विभाग में रहेगा।
हमारे अच्छे शिक्षकों को आगे आना होगा जिससे राजनितिक हस्तक्षेप काम हो। अभिभावकों को भी चाहिए वे भी अपने घोंसले से बाहर आएं उनकी भी ज़िम्मेदारी  बनती है।
अगर हम सब अपने आने वाली पीढ़ी को नैतिक मूल्य नहीं दे सके तो हमारी संस्कृति का पतन निश्चित है। 

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