अमेरिका के मिसूरी प्रांत में एक बार फिर गोरे पुलिस ऑफिसर की गोली से एक ब्लैक टीनेजर मारा गया। पुलिस के मुताबिक गोली अफसर को आत्मरक्षा में चलानी पड़ी क्योंकि उस नौजवान ने पुलिसकर्मी पर बंदूक तान दी थी। इस बार भी पुलिस के बयान पर काफी सवाल उठाए जा रहे हैं। खास तौर पर अमेरिका की ब्लैक आबादी में लगातार हो रही इस किस्म की पुलिस कार्रवाइयों को लेकर बहुत गुस्सा है।
बीते अगस्त में इसी मिसूरी के फर्ग्युसन शहर में माइकल ब्राउन नाम के एक निहत्थे युवक की एक गोरे पुलिसकर्मी द्वारा हत्या के बाद से अमेरिकी प्रशासन तंत्र का जो रूप सामने आया है वह वाकई चौंकाने वाला है। ब्राउन की हत्या के बाद जिस तरह अमेरिकी ब्लैक समुदाय की ओर से व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ वह यह दर्शाने के लिए काफी था कि सही या गलत, पर इस समूह के मन में सरकारी मशीनरी के प्रति गहरा अविश्वास है।
इसके बाद लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाली किसी भी संवेदनशील सरकार का कदम यही हो सकता था कि वह आबादी के इस गरीब, अल्पसंख्यक हिस्से के मन में बैठी गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करे, उसका भरोसा बहाल करे। मगर, ऐसी कोई आकर्षक पहल न तो अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरफ से हुई और न ही सरकारी तंत्र ऐसा कोई प्रयास करता दिखा। उलटे न्याय के नाम पर आरोपी पुलिसकर्मी को पाक-साफ करार देते हुए उसके खिलाफ मुकदमा तक चलाने से इनकार कर दिया गया।
बीते अगस्त में इसी मिसूरी के फर्ग्युसन शहर में माइकल ब्राउन नाम के एक निहत्थे युवक की एक गोरे पुलिसकर्मी द्वारा हत्या के बाद से अमेरिकी प्रशासन तंत्र का जो रूप सामने आया है वह वाकई चौंकाने वाला है। ब्राउन की हत्या के बाद जिस तरह अमेरिकी ब्लैक समुदाय की ओर से व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ वह यह दर्शाने के लिए काफी था कि सही या गलत, पर इस समूह के मन में सरकारी मशीनरी के प्रति गहरा अविश्वास है।
इसके बाद लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाली किसी भी संवेदनशील सरकार का कदम यही हो सकता था कि वह आबादी के इस गरीब, अल्पसंख्यक हिस्से के मन में बैठी गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करे, उसका भरोसा बहाल करे। मगर, ऐसी कोई आकर्षक पहल न तो अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरफ से हुई और न ही सरकारी तंत्र ऐसा कोई प्रयास करता दिखा। उलटे न्याय के नाम पर आरोपी पुलिसकर्मी को पाक-साफ करार देते हुए उसके खिलाफ मुकदमा तक चलाने से इनकार कर दिया गया।
एक तो यह कि वहां पुलिस ज्यादती का शिकार होने वाले ज्यादातर लोग ब्लैक ही क्यों हैं? दूसरा यह कि एक अकेले व्यक्ति को बेबस करने की क्या कोई भी तकनीक अमेरिकी पुलिस के पास नहीं है? तीसरी और आखिरी बात पूरी दुनिया में बन रही यह धारणा है कि अमेरिका वैसा नहीं है, जैसा होने का वह दावा करता है। हकीकत में वह वैसा ही है, जैसा अपने यहां के कमजोर समूहों को नजर आता है।
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