ये तीर्थ वो काम करते आये हैं जो आज की तारीख में मॉडर्न टूरिज्म करता है ।
हिन्दू धर्म में तीर्थ करना आदि गुरु शंकराचार्यों ने इसीलिए आवश्यक किया है ताकि तीर्थस्थान के आस पास के लोगों के रोज़गार की व्यवस्था हो सके, सांस्कृतिक ज्ञान का आदान प्रदान हो, और व्यक्ति से व्यक्ति का मन का जोड़ बने । इसीलिए हिंदुस्तान के दूर दराज़ के दुर्गम और सुगम सभी स्थानों में तीर्थस्थान मिलते हैं ।
दक्षिण भारतियों का उत्तराखंड के चार धाम या माता वैष्णव देवी के दर्शन को जाना, उत्तर भारतीय तिरुपति और रामेश्वरम के दर्शन करने जाते हैं ।
पूर्वी भारतीय पश्चिम में सोमनाथ और सिद्धि विनायक मंदिर जाते हैं और पश्चिम वाले बंगाल के माँ काली के मंदिर जाते हैं ।
यही तो हमारे देश को एक सूत्र में पिरोता है !
देश के अलग अलग हिस्सों के लोग जब तक एक दूसरे से मिलेंगे नहीं और एक दूसरे को जानेंगे नहीं तब तक एक बड़े परिवार का हिस्सा होने की भावना देशवासियों में कैसे जागृत होगी ?
पूर्वी भारतीय पश्चिम में सोमनाथ और सिद्धि विनायक मंदिर जाते हैं और पश्चिम वाले बंगाल के माँ काली के मंदिर जाते हैं ।
यही तो हमारे देश को एक सूत्र में पिरोता है !
देश के अलग अलग हिस्सों के लोग जब तक एक दूसरे से मिलेंगे नहीं और एक दूसरे को जानेंगे नहीं तब तक एक बड़े परिवार का हिस्सा होने की भावना देशवासियों में कैसे जागृत होगी ?
तीर्थस्थान की परंपरा से देश की सीमाएं भी सुरक्षित रहती हैं क्योंकि लोगों का आवागमन सालोंसाल बना रहता है ।
सोचिये कितनी दूर की सोची थी हमारे शंकराचार्यों ने !
सोचिये कितनी दूर की सोची थी हमारे शंकराचार्यों ने !
इसका एक छोटा सा उदाहरण पूर्वोत्तर भारत है ।
ये देखने लायक बात है कि वो बाकि के हिंदुस्तान से कैसे जुड़ा हुआ है । वहां के लोगों को एक आम हिंदुस्तानी नहीं जानता । हमें पूर्वोत्तर के बारे में कुछ भी नहीं पता होता है । वहां की संस्कृति क्या है, वहां की राजनीति क्या है, वहां की क्या अच्छी बातें हैं और क्या परेशानियां है ? क्या हमने कभी जानने की कोशिश की है ?
उल्टा वहां के लोगों से बाकि के देश में दुर्व्यवहार किया जाता है ।
ये देखने लायक बात है कि वो बाकि के हिंदुस्तान से कैसे जुड़ा हुआ है । वहां के लोगों को एक आम हिंदुस्तानी नहीं जानता । हमें पूर्वोत्तर के बारे में कुछ भी नहीं पता होता है । वहां की संस्कृति क्या है, वहां की राजनीति क्या है, वहां की क्या अच्छी बातें हैं और क्या परेशानियां है ? क्या हमने कभी जानने की कोशिश की है ?
उल्टा वहां के लोगों से बाकि के देश में दुर्व्यवहार किया जाता है ।
यदि पूर्वोत्तर भारत में कोई बड़ा तीर्थस्थान होता
(अभी भी बहुत हैं :
यह साइट्स देखें -
http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Hindu_temples_in_India
(अभी भी बहुत हैं :
यह साइट्स देखें -
http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Hindu_temples_in_India
http://templenet.com/encnort1.html )
और उसका बाकि के तीर्थस्थानों की तरह ही नाम होता तो वहां विकास और बाकि के राष्ट्र से जुड़े होने से सम्बंधित हालात पूरी तरह से अलग होते, कहीं अधिक बेहतर होते...
पूर्वोत्तर भारत शायद बाकि के हिंदुस्तान के लिए और अधिक प्रासंगिक होता ।
और उसका बाकि के तीर्थस्थानों की तरह ही नाम होता तो वहां विकास और बाकि के राष्ट्र से जुड़े होने से सम्बंधित हालात पूरी तरह से अलग होते, कहीं अधिक बेहतर होते...
पूर्वोत्तर भारत शायद बाकि के हिंदुस्तान के लिए और अधिक प्रासंगिक होता ।
लेकिन शायद ये बात उनके समझ नहीं आती जो ये कहते हैं कि "जो डरता है वो मंदिर जाता है" और "तीर्थस्थान दर्शन से कोई लाभ नहीं मिलता" ।
हिन्दू धर्म को समझिये, उसकी हर एक बात का वैज्ञानिक आधार है ।
हिन्दू बनो.. अच्छा लगता है ।
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