कट्टरपंथियों ने मुसलमानों का कैसा बेडा गर्क किया हुवा है.. इस पर हर मुसलमान को एक नज़र डालनी चाहिए
सन 1483 से पहले अरब और तुर्कों तक प्रिंटिंग प्रेस पहुँच चूका था.. इतिहास मिलता है इसका की उन्होंने चाइना से शायद ये तकनिकी ली थी या खुद बना लिया था.. मगर जब उस पर किताबें छापना शुरू हुई तो कुरान भी छपी.. तो सुलतान बायजीद द्वितीय ने फतवा जारी कर के प्रिंटिंग प्रेस को हराम बताया और “मौत की सजा का एलान किया अगर किसी ने प्रिंटिंग प्रेस इस्तेमाल किया तो”.. और अरब के भी आलिमों ने ऐसा ही फतवा जारी कर रखा था.. ये फतवा करीब ढाई सौ साल से तीन सौ साल तक जारी रहा और पूरी दुनिया शिक्षा का आदान प्रदान करती रही मगर मुसलमान तीन सौ सालो तक फतवे की वजह से जाहिल बने रहे.. इतना समय बहुत होता है किसी एक सभ्यता को अन्धकार में धकेलने के लिए
हमारे बचपन में भी जाने कितने मौलानाओं ने टीवी और पिक्चर हराम कर रखा था और फतवे दे रखे थे.. जाने कितने मुसलमानों के घर के बच्चे टीवी नहीं देख पाते थे अपने माँ बाप की वजह से और आज भी बहुत लोग उस पुराने फतवे को मानते हैं और घर में टीवी नहीं चलने देते हैं.. मगर फिर जब इन कठमुल्लों को होश आया तो इन्होने खुद टीवी पर आना शुरू कर दिया और अपना चैनल भी चला डाला.. ये सब कुछ अपने हिसाब से करते हैं और मुसलमान इनके हाथों की कठपुतली बना रहता है
आप कभी फतवों की वेबसाइट चेक कर के देखिये.. ऐसे उलूल जुलूल बातें और रोज़मर्रा की चीजों के लिए मुसलमान लोग इन आलिमों से सवाल पूछा करते हैं और वो सीना तान के इनको जवाब देते हैं.. ऐसे ऐसे सवाल जिनको सुनके आपको हंसी आ जाए
हम लोगों ने अपनी लगाम इन बिना पढ़े लिखे लोगों के हाथों में दे राखी है.. और अफ़सोस तब और ज्यादा होता है देख कर जब अमेरिका में बैठा हुवा कोई इंजीनिअर देवबंद के मौलानाओं से मेल करके पूछता है “की आज मैंने ख्वाब में देखा की मैंने अपनी पत्नी को मज़ाक में तीन बार तलाक बोल दिया.. क्या मेरा तलाक हो गया है?”
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