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रत्न से ज्यादा बड़े

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और (स्वर्गीय) मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा पर शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा। जब से बीजेपी अपने दम पर सत्ता में आई है, इन दोनों को यह सरकारी सम्मान दिए जाने की चर्चा किसी न किसी रूप में होती रही है। यही नहीं, जब पार्टी सत्ता से बाहर थी, तब भी इन दोनों को यह सम्मान देने की मांग करती थी। लेकिन जरा गौर से सोचें तो सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न मिलने के एक साल बाद यही सम्मान अटल जी और मालवीय जी को दिए जाने का कोई मतलब है?

हमारे देश में हरेक राजनीतिक दल के अपने-अपने नायक हैं, जिन्हें सर्वोच्च सम्मान दिलाना ये अपना फर्ज समझते हैं। दरअसल इन आइकन्स के जरिए ये पार्टियां अपने वोट बैंक को संतुष्ट करना चाहती हैं। विपक्ष में रहते हुए ये अपने फायदे वाली जगहों पर उनके नाम की रट लगाती हैं और सत्ता में आने के बाद तुरंत उन्हें सम्मानित करने की कोशिश करती हैं। इस पर विवाद भी होते हैं। हर बार एक तबका निर्णय को लेकर असंतुष्ट रहता है।

भारत जैसे विशाल और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों का चयन आसान नहीं है। संभव है जिस तबके के पास पैसे और प्रचार की ताकत हो, वह किसी खास व्यक्ति को भारत रत्न का हकदार कहना शुरू कर दे लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि देश की पूरी जनता भी उसे इस रूप में देखती हो। प्रचार तंत्र के नायक अलग होते हैं और जनता के दिलों में बसे नायक अलग।
देश में बहुत सारे ऐसे प्रतिभावान लोग हैं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है पर आज तक उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला, सिर्फ इसलिए कि उन पर सरकारी अमले की नजर नहीं पड़ी या उसने उन लोगों को पसंद नहीं किया। लेकिन इसके बावजूद उनका महत्व कम नहीं होता। जनता के बीच लोकप्रिय नायकों को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि उनके काम को आगे बढ़ाया जाए, उनके जीवन मूल्यों का प्रसार किया जाए।

अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मिले या न मिले, इससे उनकी शख्सियत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। उनकी पहचान एक ऐसे जनतांत्रिक नेता की रही है, जिसने हमेशा असहमतियों का आदर किया और सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की। बीजेपी इस आदर्श को अपनाए तो देश का भला होगा।

इसी तरह मदनमोहन मालवीय को एक महान शिक्षाशास्त्री के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने एक सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थान स्थापित करने और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अपने निजी सुख-दुख दांव पर लगा दिए। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो देश में शिक्षा संस्थानों की दशा सुधारने पर जोर देना चाहिए और उससे भी बड़ी बात कि समाज के हर तबके को शिक्षा उपलब्ध कराने की कोशिश की जानी चाहिए।

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