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हैप्पी एंडिंगः समीक्षा पढ़कर ही देखिए फिल्म

एक खूबसूरत सपना है। एक लेखक का उपन्यास इतना हिट हुआ कि उसने साढ़े पांच साल सिर्फ रॉयल्टी के दम पर जिंदगी के मजे लूटे। शानदार घर, लक्जरी कार, क्लब में पार्टियां, शराब और समय-समय पर बदलती गर्लफ्रेंड। हिंदुस्तान में यह सपना क्या कभी सच हो सकता है? दुनिया के किसी कोने में किसी भाषा के एकाध लेखक के साथ ऐसा कभी घट जाए तो उसकी कहानी कितनी नीरस और जड़ हो सकती है, वह आप हैप्पी एंडिंग में देख सकते हैं।

एक है यूडी (सैफ अली खान)। अमेरिका में रहता है। वही इस सपने वाला लेखक है। सारा पैसा उड़ा कर वह कंगाली के कगार पर है और तुरंत पैसा कमाना है। उसका एजेंट उसे एक बॉलीवुड स्टार (गोविंदा) से मिलवाता है, जो रोमांटिक कॉमेडी लिखाना चाहता है। लेखन की दुनिया में यूडी की जगह दूसरी राइटर आंचल (इलियाना डिक्रूज) ले चुकी है। 

रोमांटिक कॉमेडी लिखते-लिखते यूडी और आंचल में प्यार होता है। लेकिन दोनों एक-दूसरे के साथ जिंदगी बिताने का वादा नहीं करते। बस, यह फैसला करते हैं कि एक-एक दिन साथ जीएंगे। ये है हैप्पी एंडिंग। ट्विस्ट देने के लिए इसमें यूडी की एक गर्लफ्रेंड (कल्कि कोचिलीन) है, जिसे वह छोड़ना चाहता है और वह प्रेग्नेंट होने के बहाने से उसे अपना बनाना चाहती है।

सबके लिए नहीं है यह फिल्म

हैप्पी एंडिंग साधारण दर्शकों के लिए नहीं है। ये उन असाधारण लोगों के लिए है जो नीरस चीजों में भी रस ढूंढ लेते हैं। चाहे वे सिंगल स्क्रीन में फिल्म देखें या मल्टीप्लेक्सों में। फिल्म की कहानी, इसमें पैदा हुई परिस्थितियां और डायलॉग बनावटी और कॉमेडी नकली है। हैप्पी एंडिंग कुछेक दृश्यों को छोड़ कर कतई हैप्पी नहीं करती। 

इसके बावजूद यहां सैफ तारीफ के काबिल हैं। उनका अभिनय अच्छा है और आवारा किस्म के दिलफेंक लेखक के रूप में वे जमे हैं। जो सैफ के फैन हैं, उन्हें मजा आएगा। गोविंदा की एक पखवाड़े में यह दूसरी फिल्म है। इन फिल्मों को गोविंदा का कमबैक कहा जा रहा था। अगर गोविंदा ऐसे ही रोल करते रहे तो जल्द ही उन्हें फिर से घर पर आराम करना पड़ेगा।

 इलियाना हैं बेहद साधारण


इलियाना साधारण लगीं, जबकि कल्कि ने रोल खूबसूरती से निभाया। वह अच्छी अभिनेत्री हैं, मगर मुश्किल यह है कि वह भारतीय चेहरा नहीं हैं। हैप्पी एंडिंग एक लेखक माध्यम से यह बताने की कोशिश है कि रोमांटिक कॉमेडी कैसे लिखी जाती हैं। 

आंचल के एक डायलॉग रूप में फिल्म के लेखकों-निर्देशकों ने इस बात को साफ-साफ कहा है कि रोमांटिक किताबें/फिल्में पढ़ने-देखने वाले मूर्ख हैं। हम तो कुछ भी लिख/बना रहे हैं, मगर रोमांस के नाम पर पिघल जाने वाले हमारी रचनाओं और हमको बड़ा महान मान रहे हैं। 

शायद हकीकत ऐसी ही हो। बाजार भावनाओं से खेलना खूब जानता है। भागदौड़ तथा तनाव भरी जिंदगी में लोग अपनी भावनाओं को ‘लिफ्ट’ करने के चक्कर में विवेक का इस्तेमाल कंजूसी से कर रहे हैं। मगर आप जरूर सोचिए क्योंकि जिस खुशी की तलाश आपको है, वह यहां मिलना मुश्किल है।

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