दैनिक भास्कर में एक खबर छपी है कि आगरा घुमने आई दो ईरानी महिलाओ को नमाज पढने के लिए जगह नही मिल रही थी .. उनकी फ़ारसी भाषा कोई समझ नही पा रहा था .. और न ही वो कोई और दूसरी भाषा समझ पा रहीं थी ! वहीँ पास ही एक हनुमान मन्दिर के पुजारी ने इशारे से समझ लिया की इन्हें नमाज पढना है ... और उसने मन्दिर का द्वारा खोल दिया ताकि ये महिलाये नमाज पढ़ सके ,....
अब पुजारी के इस काम की तारीफ़ करने के बजाय नीच कठमुल्ले इस बात पर चर्चा कर रहे है की एक बुत के सामने नमाज पढकर इन दोनों महिलाओ ने इस्लाम का अपमान किया है ... देवबंद ने भी इन महिलाओ पर नाराजगी जताई है ...अब ये महिलाये बेहद डरी हुई है की कही ईरान वापस जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार न कर लिया जाए ...
अब पुजारी के इस काम की तारीफ़ करने के बजाय नीच कठमुल्ले इस बात पर चर्चा कर रहे है की एक बुत के सामने नमाज पढकर इन दोनों महिलाओ ने इस्लाम का अपमान किया है ... देवबंद ने भी इन महिलाओ पर नाराजगी जताई है ...अब ये महिलाये बेहद डरी हुई है की कही ईरान वापस जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार न कर लिया जाए ...
इन अनपढ़ मुल्लों ने शायद कभी इस्लाम की तारीख और रसूल की जीवनी नहीं पढ़ी है, इन उल्लुओं को शायद ये पता नहीं कि फतह मक्का से पहले तक रसूल (स0) और उनके तमाम सहाबा काबा के रखे 360 मूर्तियों के सामने न सिर्फ नमाज़ पढ़ते रहे बल्कि हज भी किया ! उन्होंने तो कभी ये चिंता नहीं कि बुतों के सामने पढ़ी गई नमाज या हज कबूल होगी या नहीं?
ये इतना ही नहीं है जब मदीना में मौजूद मस्जिदे-नबबी में नज़रान से आये ईसाइयों का एक समूह अपने इबादत के लिए जगह तलाश कर रहे थे तब खुद रसूल (स0) ने मस्जिदे-नबबी के एक बरामदे को उनकी इबादत के लिए पेश कर दिया था !
अब सवाल ये है कि उनकी सुन्नत का अनुपालक का दंभ भरने वाले अनपढ़ मुल्लों का दिल क्या कभी इतना बड़ा होगा कि वो अपनी इबादतगाह को किसी दूसरे मजहब वालों के इबादत के लिए खोल दें ?
ये इतना ही नहीं है जब मदीना में मौजूद मस्जिदे-नबबी में नज़रान से आये ईसाइयों का एक समूह अपने इबादत के लिए जगह तलाश कर रहे थे तब खुद रसूल (स0) ने मस्जिदे-नबबी के एक बरामदे को उनकी इबादत के लिए पेश कर दिया था !
अब सवाल ये है कि उनकी सुन्नत का अनुपालक का दंभ भरने वाले अनपढ़ मुल्लों का दिल क्या कभी इतना बड़ा होगा कि वो अपनी इबादतगाह को किसी दूसरे मजहब वालों के इबादत के लिए खोल दें ?
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