मुहर्रम के दौरान मुस्लिम मंदिर में ताजिया ले जाते हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं, यह सुनकर यकीन नहीं होता। लेकिन यह सच है कि मध्य प्रदेश के दतिया जिले में ऐसा होता है जो कि सांप्रदायिक सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल है।
दतिया जिले के भंडेर गांव में भगवान चतुर्भुज (कृष्ण का एक रूप) का एक मंदिर है। यह मंदिर सांप्रदायिक सद्भाव का एक प्रतीक बन चुका है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 200 साल पहले वहां के एक स्थानीय मुस्लिम ने की थी।
इस मंदिर के पुजारी रमेश पांडा ने कहा, 'ऐसा कहा जाता है कि हजारी नाम के एक मुस्लिम शख्स के सपने में भगवान आए। हजारी के सपने में भगवान ने तलाब में अपनी मौजूदगी के बारे में बताया। हजारी की नींद खुली तो उसे तीन टन की एक मूर्ति मिली। उस मूर्ति को हजारी ने अपने घर के पीछे सुरक्षित रखा। 100 साल बाद एक बार फिर से हजारी के परिवार वालों के सपने में भगवान आए और उन्होंने उस स्थान पर अपनी मौजूदगी के बारे में कहा। इस सपने का बाद हजारी के परिवार वालों ने मूर्ति स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया। तब से ही यहां पूजा होती आ रही है। मंदिर के लिए इसी परिवार ने अपनी जमीन भी दी थी।'
पांडा ने बताया कि हर साल भगवान चतुर्भुज की यात्रा निकलती है लेकिन यह यात्रा बिना मुस्लिमों के शामिल हुए शुरू नहीं होती है। वहीं जब मुहर्रम में ताजिए का जुलूस निकलता है तब भी मुस्लिम इस मंदिर के पास ठहरकर पूजा करते हैं। मध्य प्रदेश का भंडेर गांव सद्भावना का प्रतीक बन गया है। बाबरी विध्वंस के बाद भी इस गांव को किसी की नजर नहीं लगी। पांडा ने कहा कि उस वक्त भी दोनों समुदायों को लोगों ने इस मंदिर की सुरक्षा की थी। हजारी खानदान की पांचवी पीढी़ के 74 साल के मिस्वाहुद्दीन सिद्दिकी ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने इसी तरह एक और मंदिर का निर्माण करवाया था।
दतिया जिले के भंडेर गांव में भगवान चतुर्भुज (कृष्ण का एक रूप) का एक मंदिर है। यह मंदिर सांप्रदायिक सद्भाव का एक प्रतीक बन चुका है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 200 साल पहले वहां के एक स्थानीय मुस्लिम ने की थी।
इस मंदिर के पुजारी रमेश पांडा ने कहा, 'ऐसा कहा जाता है कि हजारी नाम के एक मुस्लिम शख्स के सपने में भगवान आए। हजारी के सपने में भगवान ने तलाब में अपनी मौजूदगी के बारे में बताया। हजारी की नींद खुली तो उसे तीन टन की एक मूर्ति मिली। उस मूर्ति को हजारी ने अपने घर के पीछे सुरक्षित रखा। 100 साल बाद एक बार फिर से हजारी के परिवार वालों के सपने में भगवान आए और उन्होंने उस स्थान पर अपनी मौजूदगी के बारे में कहा। इस सपने का बाद हजारी के परिवार वालों ने मूर्ति स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया। तब से ही यहां पूजा होती आ रही है। मंदिर के लिए इसी परिवार ने अपनी जमीन भी दी थी।'
पांडा ने बताया कि हर साल भगवान चतुर्भुज की यात्रा निकलती है लेकिन यह यात्रा बिना मुस्लिमों के शामिल हुए शुरू नहीं होती है। वहीं जब मुहर्रम में ताजिए का जुलूस निकलता है तब भी मुस्लिम इस मंदिर के पास ठहरकर पूजा करते हैं। मध्य प्रदेश का भंडेर गांव सद्भावना का प्रतीक बन गया है। बाबरी विध्वंस के बाद भी इस गांव को किसी की नजर नहीं लगी। पांडा ने कहा कि उस वक्त भी दोनों समुदायों को लोगों ने इस मंदिर की सुरक्षा की थी। हजारी खानदान की पांचवी पीढी़ के 74 साल के मिस्वाहुद्दीन सिद्दिकी ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने इसी तरह एक और मंदिर का निर्माण करवाया था।
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