काश दुनिया में इस्लाम न होता ।
मेरा अल्लाह यों बदनाम न होता ।
न लुटती इज्जत , न मरते बच्चे ।
न शान्ति के नाम पे कत्लेआम होता ।
काश दुनिया में इस्लाम न होता ।
न भय होता , न आतंकवाद होता ।
न स्त्रियों केलिए तुगलकी फरमान होता ।
काश दुनिया में इस्लाम न होता ।
मर्द औरत का दर्जा एक समान होता ।
न खुदा के नाम पर पशु कुर्बान होता ।
काश दुनिया में इस्लाम न होता ।
न होते माँ भारती के इतने टुकड़े ।
न हिन्दोस्तान न ही पाकिस्तान होता ।
खुशियों से भरा ये सारा जहान होता ।
काश दुनिया में मुसलमान न होता
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