समाधान- हनुमान जी के विषय में यह भ्रान्ति अनेक बार सामने आती है कि वह उड़ कर समुद्र कैसे पार कर गए क्यूंकि मनुष्य द्वारा उड़ना संभव नहीं है। सत्य यह है कि हनुमान जी ने उड़ कर नहीं अपितु तैर कर समुद्र को पार किया था। रामायण में किष्किन्धा कांड के अंत में यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया गया है। सम्पाती के वचन सुनकर अंगदादि सब वीर समुद्र के तट पर पहुँचे तो समुद्र के वेग और बल को देखकर सबके मन खिन्न हो गये। अंगद ने सौ योजन के समुद्र को पार करने का आवाहन किया। युवराज अंगद के सन्देश को सुनकर वानरों ने 100 योजन के समुद्र को पार करने में असमर्थता दिखाई। तब अंगद ने कहा कि मैं 100 योजन तैरने में समर्थ हूँ पर वापिस आने कि मुझमे शक्ति नहीं है। तब जाम्बवान ने कहा आप हमारे स्वामी है आपको हम जाने नहीं देंगे। इस पर अंगद ने कहा यदि मैं न जाऊँ और न कोई और पुरुष जाये तो फिर हम सबको मर जाना ही अच्छा है। क्यूंकि कार्य किये बिना, सुग्रीव के राज्य में जाना भी मरना ही है।
अंगद के इस साहस भरे वाक्य को सुनकर जाम्बवान बोले-राजन मैं अभी उस वीर को प्रेरणा देता हूँ, जो इस कार्य को सिद्ध करने में सक्षम है। इसके पश्चात हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण करा प्रेरित किया गया। हनुमान जी बोले-"मैं इस सारे समुद्र को बाहुबल से तर सकता हूँ और मेरे ऊरु, जंघा के वेग से उठा हुआ समुद्र जल आकाश को चढ़ते हुए के तुल्य होगा। मैं पार जाकर उधर की पृथ्वी पर पाँव धरे बिना, अर्थात विश्राम करे बिना फिर उसी वेग से इस ओर आ सकता हूँ। मैं जब समुद्र में जाऊँगा, अवश्य खिन्न हुए लता, वृक्ष आकाश को उड़ेंगे, अर्थात अन्य स्थान का आश्रय ढूंढेंगे।" (श्लोक किष्किन्धा काण्ड,६७/२६)
इसके पश्चात हनुमान समुद्र में उतरने के लिए एक पर्वत के शिखर पर चढ़ गये। उनके वेग से उस समय प्रतीत होता था कि पर्वत काँप रहा है। हनुमान जी के समुद्र में प्रविष्ट होते ही समुद्र में ऐसा शब्द हुआ जैसे कि मेघ गर्जन से होता है। और हनुमान जी ने वेग से उस महासमुद्र को देखते ही देखते पार कर लिया।
अंगद के इस साहस भरे वाक्य को सुनकर जाम्बवान बोले-राजन मैं अभी उस वीर को प्रेरणा देता हूँ, जो इस कार्य को सिद्ध करने में सक्षम है। इसके पश्चात हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण करा प्रेरित किया गया। हनुमान जी बोले-"मैं इस सारे समुद्र को बाहुबल से तर सकता हूँ और मेरे ऊरु, जंघा के वेग से उठा हुआ समुद्र जल आकाश को चढ़ते हुए के तुल्य होगा। मैं पार जाकर उधर की पृथ्वी पर पाँव धरे बिना, अर्थात विश्राम करे बिना फिर उसी वेग से इस ओर आ सकता हूँ। मैं जब समुद्र में जाऊँगा, अवश्य खिन्न हुए लता, वृक्ष आकाश को उड़ेंगे, अर्थात अन्य स्थान का आश्रय ढूंढेंगे।" (श्लोक किष्किन्धा काण्ड,६७/२६)
इसके पश्चात हनुमान समुद्र में उतरने के लिए एक पर्वत के शिखर पर चढ़ गये। उनके वेग से उस समय प्रतीत होता था कि पर्वत काँप रहा है। हनुमान जी के समुद्र में प्रविष्ट होते ही समुद्र में ऐसा शब्द हुआ जैसे कि मेघ गर्जन से होता है। और हनुमान जी ने वेग से उस महासमुद्र को देखते ही देखते पार कर लिया।
(हिंदी भाषा में एक प्रसिद्द मुहावरा है" हवा से बातें करना" अर्थात अत्यंत वेग से जो चलता या तैरता या गति करता है उसे हवा से बातें करना कहते है। हनुमान जी ने इतने वेग से समुद्र को पार किया कि उपमा में हवा से बातें करना परिवर्तित होकर हवा में उड़ना हो गया। इसी से यह भ्रान्ति हुई कि हनुमान जी हवा में उड़ते थे जबकि सत्य यह है कि वह ब्रह्मचर्य के बल पर हवा के समान तेज गति से कार्य करते थे)
डॉ विवेक आर्य
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