सालों पहले एक महान कलाकार को एक कैथेड्रल की दीवार पर भित्तिचित्र बनाने का काम सौंपा गया था। पेंटिंग का विषय था- 'क्राइस्ट का जीवन।’ उन्हें मॉडल ढूंढने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। खासकर क्राइस्ट और उन्हें धोखा देने वाले जूडास का मॉडल तलाशने में।
एक दिन शहर के पुराने इलाके में टहलते हुए उनका सामना बच्चों के एक समूह से हुआ। उनमें से एक 12 साल के बच्चे का चेहरा कलाकार को अच्छा लगा। उन्हें वह चेहरा बिल्कुल किसी एंजिल की तरह लगा। बहुत ही गंदा, लेकिन उन्हें इसी चेहरे की तो तलाश थी। उन्हें क्राइस्ट बच्चे का मॉडल मिल गया था। क्राइस्ट बच्चे का चित्र बनने तक वह बच्चा रोज-रोज बेहद संयम के साथ बैठता।
पेंटर को जूडा के मॉडल के तौर पर कोई नहीं मिला। कई वर्षों बाद भी उन्हें यह ही डर सता रहा था कि उनका मास्टरपीस अभी तैयार नहीं हुआ है। उन्होंने अपनी खोज जारी रखी। उन्हें ऐसा चेहरा कहीं नहीं मिला, जिसे जूडा के तौर पर वह पेश कर सके। उन्हें ऐसा चेहरा चाहिए था जिस पर पूरी तरह हवस और लालच दिखाई दें।
एक दिन पेंटर अपने वरांडे में बैठा चाय पी रहा था। एक जीर्ण-शीर्ण सी छवि सड़क पर दिखाई दी, जो अचानक ही पेंटर के सामने आकर गिर गई। पेंटर ने उसे ऊपर उठाया। उसके चेहरे की ओर देखा। उस पर दुनिया का हर तरह का पाप दिख रहा था।
पेंटर ने उत्साहित होकर उस शराबी को अपने पैरों पर खड़ा किया। उसे आखिर जूडा का मॉडल मिल गया था। पेंटर अपने नए मॉडल के साथ फुर्ती से काम में लग गया। वह जल्द से जल्द अपना मास्टरपीस पूरा करना चाहता था।
जैसे-जैसे काम आगे बढ़ा, मॉडल में बदलाव आने लगे। मॉडल की सूर्ख लाल आंखों में डर बैठने लगा। उसके उबड़-खाबड़ चेहरे पर आंसू बह निकले। मॉडल के इस रुख को देखते हुए पेंटर रुक गया। उसने पूछा, 'मेरे बच्चे, तुम्हें क्या परेशान कर रहा है? क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं।’
मॉडल ने सुबकते हुए अपने चेहरे को अपने हाथों में छिपा लिया। थोड़ी देर बाद उसने अपनी आंखें खोली। पेंटर से पूछा- 'क्या आपने मुझे नहीं पहचाना? कई साल पहले मैं ही आपके लिए क्राइस्ट बच्चे का मॉडल बना था। मैं ही सबका चहेता और सबसे बड़ा धोखेबाज।’
यहां दी गई कहानी की ही तरह हम सभी में क्राइस्ट और जूडा के गुण होते हैं। लेकिन उनकी मात्रा अलग-अलग होती है। हम सभी में एक उजला पक्ष होता है और एक अंधेरा पक्ष। अच्छी और बुरी क्वालिटी होती है। पूरा सफेद या काला कभी नहीं होता; सामान्य तौर पर ग्रे के सभी शेड्स होते हैं।
इस प्रतिशत मात्रा में विविधता ही व्यक्तित्व में अंतर लाती है। यह सहज ही है कि जिस व्यक्ति की मुस्कराहट में अच्छाई ज्यादा है, वह अन्य लोगों के मुकाबले ज्यादा खुश और शांत रहता है।
रईस हो या गरीब, बूढ़ा हो या युवा, बुद्धिमान या मूर्ख, हम सभी खुश रहना चाहते हैं। खुश रहने के लिए हम धीरे-धीरे अपने अंदर के नकारात्मक गुणों को दूर करने की कोशिश करते हैं। इसी तरह हम अपने दिमाग और गतिविधियों में अच्छाई लाने की कोशिश करते हैं।
अब इससे मूल प्रश्न खड़ा होता है: अच्छा क्या है और बुरा क्या है? सही क्या है और गलत क्या है? यह संस्कृति-दर-संस्कृति और व्यक्ति-दर-व्यक्ति बदलता रहता है। हमारे घर में जूते पहनकर घर में आना एक अपराध है, लेकिन मेरे पड़ोसी के घर में यह अपने पैरों को साफ-सुथरा और स्वस्थ रखने का तरीका है।
हो सकता है कि आज कुछ गलत हो, जो कल सही साबित हो। बातचीत भी शायद सच हो। गैलिलियो ने जब तक साबित नहीं किया कि पृथ्वी गोल है, तब तक हम मानते थे कि पृथ्वी समतल है। मर्सी किलिंग कुछ देशों में कानूनी तौर पर वैध है, जबकि भारत में ऐसा करने पर किसी को फांसी पर लटकाया जा सकता है। यह भी भविष्य में बदल सकता है। इस वजह से हम किसी भी काम को सही या गलत के चश्मे से नहीं देख सकते।
क्या हम ये नहीं सोचते कि रौशनी करने से चोरो को दूर रखा जा सकता है? जागरुकता ही रौशनी है, जिससे हम चोरों जैसे शैतानों को दूर रख सकते हैं। जागरुकता का मतलब है कोई व्यक्ति पल-पल सजग रहता है। हर गतिविधि और विचार में चेतना होती है। कुछ भी नहीं छूटता; कुछ भी मिस नहीं होता। जागरुकता के साथ जीना यांत्रिक कामकाज रोकने की दिशा में पहला कदम है। कुशल प्रशिक्षित मशीन की तरह व्यवहार करने के बजाय हम थोड़ी ज्यादा देखभाल के साथ काम करने पर जोर दे सकते हैं। अपनी भागीदारी को बढ़ाते हुए। जब कोई काम हम शरीर, दिल और बुद्धि से करते हैं तो कह सकते हैं कि उस काम को हमने पूरी जागरुकता के साथ किया।
हम छोटी-छोटी बातों से शुरू कर सकते हैं। हमें सुबह-सुबह टूथपेस्ट के रंग को महसूस करना होगा। फिर जमीन पर गिरी ओस की बूंदों को सूंघना होगा। बच्चे के गीले गालों को महसूस करना होगा। आप दफ्तर जाते समय अपने वाहन की घुरघुराहट महसूस करें। हमें इस बात का आश्चर्य होगा कि हमने इसे पहले कभी महसूस क्यों नहीं किया? हमने जिन वस्तुओं या बातों को कभी भी खूबसूरत महसूस नहीं किया, उनमें भी हमें खूबसूरती नजर आएगी।
कुछ प्रैक्टिस के बाद हम अपनी भावनाओं को भी समझने लगेंगे, जो हमारे अंदर ही होती हैं। यदि कोई ऐसी परिस्थिति बनती है, जिससे आपको गुस्सा आए, क्या यह संभव है कि हम सोचे कि गुस्सा होना है या उस स्थिति को वैसे ही छोड़ देना है। हम भावना के काबू में न आएं और उसे अपने काबू में रखें। लालच और नफरत जैसी नकरात्मकता हमसे दूर होती चली जाएगी, जैसे-जैसे हम उनके बारे में ज्यादा जागरुक होते जाएंगे। किसी भी व्यक्ति को अपने आप में ज्यादा से ज्यादा प्रेमी की तरह के गुणों को प्रोत्साहित करना चाहिए। जूडा अपने आप पीछे रह जाएगा। जागरुकता में हम जूडा को पीछे छोड़ सकते हैं।
जिंदगी के सभी तालों की मास्टर की है जागरुकता। हालांकि ताला जितना बड़ा है, जागरुकता की उतनी ही छोटी चाबी से उसे आसानी से खोला जा सकता है। आखिर चाबी हमेशा छोटी ही होती है, सही है न?
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