Skip to main content

खुश रहें! न अच्छे दिन आए, न अच्छे दिन आएंगे

साफ नीयत सही विकास’ के साथ ईमानदारी और कामकाजी सरकार का जिक्र। ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ महज जुमले के साथ कांग्रेस का हमला। ‘हम में है दम अब आपके भरोसे नहीं’ के नारे के साथ नीतीश समेत एनडीए सहयोगियों का दम-खम। ‘सब साथ तो फिरसत्ता हमारे हाथ’ के साथ विपक्ष का नारा। तेवर हर किसी के, पर मुद्दे गायब। तो क्या ये मान लिया जाए कि धर्म के आसरे ध्रुवीकरण की राजनीति की उम्र पूरी हो चुकी है।

हिन्दुत्व की चाशनी में सोशल इंजीनियरिंग का खेल खत्म हो चला है। मुद्दों की फेहरिस्त कोई गिना दे पर पूरी कोई नहीं करता, ये सच मोदीकाल की देन है। ईमानदारी का राग या घोटालों के दाग की परिभाषा बदल चुकी है। यानी पहली बार देश प्रिंट मीडिया और टीवी मीडिया से होते हुए डिजिटल मीडिया या कहें सोशल मीडिया के आसरे हर मुद्दे पर इतनी बहस कर चुका है कि छुपाने के लिए किसी दल के पास कुछ नहीं और बताने के लिए किसी नेता के पास कुछ नया नहीं है। फिर भी 2019 आएगा। चुनाव होंगे। लोकतंत्र का राग गाया जाएगा और वह मुद्दे जिन्हें कभी नेहरू के सोशलिज्म तले देश ने देखा-समझा।
लालबहादुर शास्त्री के ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को सुना। इंदिरा के जरिए दुनिया की ताकत बनने का हौसला पाया। राजीव गांधीके जरिए तकनीक की समझ विकसित की। पीवी के जरिए बाजारवाद को परखा। वाजपेयी के जरिए गठबंधन की अनूठी सियासत समझी। मनमोहन सिंह के जरिए आवारा पूंजी को भोगा और नरेन्द्र मोदी के जरिए वादों की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त देखी।

पर हालात बदले क्यों नहीं? हर दौर में सत्ता ने देश की गरीबी दिखाई, पर खुद की रईसी में किसी सत्ता ने कोताही नहीं बरती। और मौजूदा दौर तो रिकॉर्ड तोड़ने वाला है जहां प्रचार से लेकर दुनिया भ्रमण कुछ इस अंदाज में जारी है जैसे सब फ्री हो। दरअसल किसी ने भी उस भारत की जरूरतों को उसी की ताकत से स्वावलंबी बनाने के बारे में सोचा ही नहीं, जो समूची दुनिया में बेची जाती है। मसलन भारत है तो सस्ते मजदूर मिल जाएंगे। गांव में बसता भारत किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए मुफ्त में जमीन से लेकर खनिज संपदा देने को तैयार है। तीनों का दोहन किया गया। तीनों को वोट बैंक से जोड़कर हर सियासत ने लूटपाट की। विज्ञापनों के जरिए धोखा नहीं दिया जा सकता ये सीख है, पर बेअसर है। हर राज्य ने जो नहीं किया, उसे प्रचारित किया। 27 राज्यों के विज्ञापन देश के हर राज्य में छपते रहे।
अखबारों से लेकर टीवी तक दिखाई देते रहे। यानी भ्रष्ट राजनीति की लकीर मनमोहन सरकार के दौर में इतनी मोटी थी कि नेताओं से घृणा होने लगी, तो अन्ना आंदोलन के सामने झटपट संसद तक को नतमस्तक होने में देर नहीं लगी। और मोदीकाल ने किसी भी करप्शन के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर ये जतला-बतला दिया कि सब सियासत है। ये सत्ता पाने का खेल है, तो फिर जनता क्या करे। क्योंकि जनता के पैसे पर ही सत्ता की मौज है। आलम है क्या जरा समझ लें। मसलन आंकड़ों के लिहाज से समझें तो देश में कुल 4582 विधायकों पर साल में औसतन 7 अरब 50 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। इसी तरह कुल 790 सांसदों पर सालाना 2 अरब 55 करोड़ 96 लाख रुपए खर्च होते हैं। अब तो राज्यपाल भी राजनीतिक पार्टी से निकल कर ही बनते हैं तो तमाम राज्यपाल-उपराज्यपालों पर एक अरब 8 करोड़ रुपए सालाना खर्च होते हैं।

खर्चों के इस समंदर में पीएम और तमाम राज्यों के सीएम का खर्चा जोड़ा नहीं गया है। फिर भी इन हालातों के बीच अगर हम आप से ये कहें कि नेताओं को और सुविधा चाहिए यानी बंगले की सुविधा। देशभर में सभी नेताओं के बंगले और नेताओं की पार्टियों के ट्रस्ट की सरकारी जमीन अगर जोड़ दी जाए तो फिर आपको जानकर और हैरत होगी कि साढ़े तीन लाख एकड़ में फैली दिल्ली भी नेताओं के मकान के घेरे में छोटी पड़ जाएगी। पर हालत यहीं नहीं थमती। सवाल तो ये है कि कमोबेश हर राज्य में नेताओं की पौ बारह रहती है। सत्ता किसी की रहे, रईसी किसी की कम होती नहीं। नेताओं ने मिलकर आपस में ही यह सहमति भी बना ली कि नेता जीते, चाहे हारे उसे जनता का पैसा मिलते रहना चाहिए। जी, अगर आपने किसी सांसद या विधायक को हरा दिया, तो उसकी सुविधा में कमी जरूर आती है पर बंद नहीं होती। मसलन सांसद हार जाए तो भी हर सांसद को 20 हजार रुपए महीने की पेंशन मिलती है। 10 एयर टिकट तो सेकंड क्लास में एक साथी के साथ यात्रा फ्री में। टेलीफोन बिल भी मिल जाता है। हारे हुए विधायकों के बारे में राज्य सरकारें ज्यादा सोचती हैं तो और हर पूर्व विधायक को 25 हजार रुपए की पेंशन जिंदगी भर मिलती रहती है। सालाना एक लाख रुपए का यात्रा कूपन भी मिलता है। सफर हवाई हो या रेल या फिर तेल भराकर टैक्सी सफर, महीने का 8 हजार तीन सौ रुपए। और अगर कोई पूर्व सांसद पहले विधायक रहा तो उसे दोनों की पेंशन यानी हर महीने 45 हजार रुपए मिलते रहेंगे।

यानी जनता जिसे हरा देती है, उसके ऊपर देश में हर बरस करीब 200 करोड़ रुपए से ज्यादा जनता का पैसा लुटाया जाता है। जो सत्ता में रहते हैं, उनकी तो पूछिये मत। दिन में होली, रात दीवाली हमेशा रहती है। ऐसे में आखिरी सवाल, 2019 में वह कौन सा मुद्दा होगा जिसके आसरे देश में सत्ता बदल जाएगी। या फिर वह कौन सी उम्मीद होगी जिसके जरिए आमजन सोचेगा कि 2019 जल्दी आ जाए तो उसके अच्छे दिन आ जाएंगे। आखिरी सच तो यही है कि एक दिन में पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज ड्यूटी भर से केंद्र सरकार के खजाने में 665 करोड़ रुपए आ जाते हैं। राज्य सरकारों को वैट से 456 करोड़ की कमाई होती है। पेट्रोलियम कंपनियों को एक दिन में पेट्रोल-डीजल बेचने से 120 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा होता है।

प्रधानमंत्री के एक दिन के विदेश दौरे पर 21 लाख रुपए खर्च होते हैं तो केंद्र सरकार का विज्ञापनों पर एक दिन का खर्च करीब 4 करोड़ रुपए है। सिर्फ एक दिन में मुख्यमंत्रियों के दफ्तर में चाय-पानी पर 25 लाख रुपए खर्च होते हैं। प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम एक संदेश में 8 करोड़ 30 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। तो भी इंतजार करें 2019 का। 

Comments

Popular posts from this blog

बड़ी आंखों वाली लड़की होती है भाग्यवान, ये हैं किस्मत वाली स्त्रियों के चिह्न

सभी पुरुष चाहते हैं कि उनका विवाह ऐसी स्त्री से हो जो भाग्यशाली हो व कुल का नाम ऊंचा करने वाली हो, लेकिन सामान्य रूप से किसी स्त्री को देखकर इस बारे में विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि सुंदर दिखने वाली स्त्री कुटिल भी हो सकती है, वहीं साधारण सी दिखने वाली स्त्री विचारवान हो सकती है। ज्योतिष के अंतर्गत एक ऐसी विधा भी है जिसके अनुसार किसी भी स्त्री के अंगों पर विचारकर उसके स्वभाव व चरित्र के बारे में काफी कुछ आसानी से जाना सकता है।  इस विधा को सामुद्रिक रहस्य कहते हैं। इस विधा का संपूर्ण वर्णन सामुद्रिक शास्त्र में मिलता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सामुद्रिक शास्त्र की रचना भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने की है। इस ग्रंथ के अनुसार आज हम आपको कुछ ऐसे लक्षणों के बारे में बता रहे हैं, जिसे देखकर  सौभाग्यशाली स्त्रियों के विषय में आसानी से विचार किया जा सकता है-    1 of 8 Next श्लोक पूर्णचंद्रमुखी या च बालसूर्य-समप्रभा। विशालनेत्रा विम्बोष्ठी सा कन्या लभते सुखम् ।1। या च कांचनवर्णाभ रक्तपुष्परोरुहा। सहस्त्राणां तु नारीणां भवेत् सापि पतिव्रता ।2।  ...

मान्यताएं: मंदिर से जूते-चप्पल चोरी हो जाए तो समझें ये बातें

मंदिर से जूते-चप्पल चोरी होना आम बात है। इस चोरी को रोकने के लिए सभी बड़े मंदिरों में जूते-चप्पल रखने के लिए अलग से सुरक्षित व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था के बावजूद भी कई बार लोगों के जूते-चप्पल चोरी हो जाते हैं। किसी भी प्रकार की चोरी को अशुभ माना जाता है, लेकिन पुरानी मान्यता है कि जूते-चप्पल चोरी होना शुभ है।   यदि शनिवार के दिन ऐसा होता है तो इससे शनि के दोषों में राहत मिलती है। काफी लोग जो पुरानी मान्यताओं को जानते हैं, वे अपनी इच्छा से ही दान के रूप में मंदिरों के बाहर जूते-चप्पल छोड़ आते हैं। इससे पुण्य बढ़ता है।   पैरों में होता है शनि का वास   ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर और कठोर ग्रह माना गया है। शनि जब किसी व्यक्ति को विपरीत फल देता है तो उससे कड़ी मेहनत करवाता है और नाम मात्र का प्रतिफल प्रदान करता है। जिन लोगों की राशि पर साढ़ेसाती या ढय्या चली रही होती है या कुंडली में शनि शुभ स्थान पर न हो तो उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।   हमारे शरीर के सभी अंग ग्रहों से प्रभावित होते हैं। त्वचा (चमड़ी) और पैरों में श...

सुबह जल्दी नहाने से बढ़ती है चेहरे की चमक और मिलते हैं ये फायदे

अच्छे स्वास्थ्य और सुंदर शरीर के लिए जरूरी है रोज नहाना। नहाने के लिए सबसे अच्छा समय सुबह-सुबह का ही होता है। शास्त्रों में सुबह जल्दी नहाने के कई चमत्कारी फायदे बताए गए हैं। नहाते समय यहां दी गई बातों का ध्यान रखेंगे तो सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो सकती है और कुंडली के दोष भी शांत हो सकते हैं। साथ ही, स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं।   सुबह जल्दी नहाने के फायदे...   शास्त्रों के अनुसार सुबह जल्दी जागना अनिवार्य बताया है। जल्दी जागकर सूर्योदय से पूर्व नहाने से त्वचा की चमक बढ़ती है और दिनभर के कामों में आलस्य का सामना नहीं करना पड़ता है। जबकि जो लोग देर से नहाते हैं, उनमें आलस्य अधिक रहता है, वे जल्दी थक जाते हैं और कम उम्र में ही त्वचा की चमक कम हो सकती है।   सुबह जल्दी जागकर नहाने के बाद प्रतिदिन सूर्योदय के समय सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए। सूर्य को जल चढ़ाने से मान-सम्मान प्राप्ति होती है, ऑफिस हो या घर आपके कार्यों को सराहना मिलती है।   नहाने से पहले तेल मालिश करें   नहाने से पहले शरीर की अच्छी तरह से तेल मालिश करना चाहि...