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किसान सरकारों को बोझ क्यूँ लगते हैं ?

किसी भी देश की तरक्की का रास्ता खेत -खलिहानो से होकर जाता है। 

हमारे देश में सबसे दयनीय हालत किसान की  है। वो किसान जो संसार का पेट भरता है आज खुद भूखा रहने पर मजबूर है। कभी मौसम की मार, कभी समय पर बिजली-पानी का न मिल पाना, कर्ज के बोझ तले दबा हुआ। फटे हाल उम्मीद की नज़रों से देखता हुआ लेकिन जो आता है इस्तेमाल करके चला जाता है।
ऐसी हालत क्यूँ हुई किसान की ? कभी कोई नहीं सोचता।  क्यों ? क्यूंकि इनसे पार्टी फण्ड के नाम पर कभी किसी को पैसा नहीं मिलता। नेताओं की झोली नहीं भरती।
पिछले तीन सालों में हमारे देश तमाम राज्य सरकारों ने 17लाख करोड़ रु संघठित क्षेत्र में टैक्स माफ़ी के रूप में दे दिया जबकि किसानो को यदि सम्पूर्ण कर्ज माफ़ी दी जाय तो भी 12. 6 लाख करोड़ रु का खर्च आएगा। लेकिन १२. ६ लाख करोड़ के लिए सोचना पड़ेगा की इतना पैसा आएगा कहाँ से ? सारे नेतागण बोल उठेंगे कि ये हो जायेगा वो हो जायेगा। कथित अर्थशास्त्री अपने वातानुकूलित कमरों में बैठ कर किसान की लागत का आंकलन करते है। SBI के अधिकारी फण्ड की कमी का रोना रोते हैं। पर इस पर ध्यान कोई भी जानबूझकर नहीं देना चाहता कि हमने जो 17 लाख करोड़ रु टैक्स माफ़ी के रूप में संगठित क्षेत्र को दिए हैं जो केवल अमीरों की तिजोरी में जायेंगे उनको न देकर किसानों को सम्पूर्ण कर्ज माफ़ी दी जाती तो लगभग 5 लाख करोड़ का फायदा देश को होता और देश का अन्नदाता शायद कुछ बेहतर जिंदगी जी लेता। पर नहीं क्यूंकि अगर किसान समस्या से बाहर आ गया तो शायद कुछ लोगों की दुकान बंद हो जाएगी।
बात अगर रोजगार की करें तो हमारे देश में लगभग 23 करोड़ लोग किसान हैं जबकि संगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग लगभग 3 करोड़ हैं। अगर एक आदमी के पीछे पांच सदस्यों का एक परिवार लेकर चले तो संगठित क्षेत्र केवल पंद्रह करोड़ लोगों का पेट भरता है जबकि किसान 115 करोड़ लोगों का पेट भरता है।
बात अगर कर्ज देने की करें तो यहाँ भी भेदभाव किया जाता है अगर कोई किसान ट्रेक्टर के लिए कर्ज लेना चाहे तो उसके लिए उसकी लाखों की जमीन गिरवी रखने के बाद भी उसको 13 से 18 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज दिया जायेगा परन्तु यदि कोई कार लेनी हो तो बहुत काम ब्याज दर पर बिना कोई गारंटी के कर्ज मिल जायेगा।
अगर कोई संगठित क्षेत्र का उद्योगपति कर्ज लेना चाहे तो उसके गारंटी से कई सौ गुना कर्ज मिल जायेगा चाहे वो चुकाए या न चुकाए जैसा कोठारी के मामले में हुआ है।
नीरव मोदी ,ललित मोदी विजय माल्या और न जाने कितने नाम हैं जो  कर्ज लेकर भाग चुके हैं या अपने आप आपको दिवालिया घोषित कर चुके हैं और आराम से ऐश की जिंदगी जी रहें हैं परन्तु यदि किसान कर्ज वापस न करे तो उसका भूखा मरना तय है।
किसान  बेटा खेत में काम करता है तो देश का पेट भरता है और सीमा पर खड़ा होकर देश की सीमाओं की रक्षा करता है।
भारत माँ ने न तो कोई नेता जन्मा है और न ही उद्योग पति जो अपने बेटे को सीमा पर भेज दे लड़ने को वो तो किसान का ही कलेजा है जो अपने बेटे को हसते हसते भेज देता है सीमा पर।
जब हमारे माननीयों को लगता है कि उनका वेतन कम है तो न कोई हल्ला मचता है और न कहीं कोई विरोध आराम से सब सेट कर लेते हैं परन्तु अगर किसान कोई छूट की बात आती है तो खजाने पर अतिरिक्त बोझ का रोना। किसी छुटभैये नेता की गाडी यदि किसी टोल प्लाज़ा से होकर गुजरती है तो या तो टोल माफ़ या रोड होल्ड कर लेते हैं परन्तु किसान का वाहन गुजरेगा तो टोल देना पड़ेगा क्यूँ ?मोदी सरकार तो एक ऐसा कानून लाने वाली थी जिससे ट्रेक्टर को ट्रक की कैटगरी में लाया जाता।
न्यूनतम समर्थन मूल्य के नाम पर धोखा , कभी राहत के नाम पर २-३ रु के चेक पकड़ा दिए जाते हैं।
भूमि अधिग्रहण बिल जैसे अध्यादेश।
रोज आत्महत्या हो रही है परन्तु परिणाम सिफर। ....
इनको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्यूंकि सीमा पर भी किसान का बेटा खड़ा है और खेत में भी।  एक भोजन दे रहा है दूसरा भरोसा सुरक्षा का।
सोचो किसान भाइयो और उसे चुनो जो तुम्हारी सुने। ...


हरेंद्र सिंह चौधरी 

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