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छोटी राजनीति, दोगलापन या देशद्रोह

याकूब मेमन को फांसी दे दी गयी जो एक ऐतिहासिक फैसला है, परन्तु इस घटना का जिस तरह से राजनीतिकरण हो रहा है वो बहुत ही दुखद है, हम किसी भी तरह से किसी की मृत्यु को सही नही ठहरा सकते वो भी उसके मरने के बाद, परन्तु याकूब जैसे लोगो के लिए हम उनके जीवित रहने को सही नही कह सकते।
जिस तरह से इस मृत्यु दंड के फैसले का मजाक बनाया गया या यूँ कहा जाये हमारे कानून के घुमाव दार पैंतरों इस्तेमाल हमारे प्रबुद्ध वकीलों के द्वारा याकूब को बचाने में किया गया वो हमारे समाज को सोचने पर मजबूर कर देता है, क्या यही हैं हमारे कानून के रखवाले, सताए हुओं को न्याय दिलाने वाले? हम यहाँ मृत्यु दंड को जायज नहीं ठहरा रहे परन्तु जो हमारे महानुभावों ने किया उसका विरोध जरूर कर रहे हैं.
इस फैसले का पूरे २२ साल तक इंतज़ार किया हमारे देश की जनता ने क्यों?
क्या इसी दिन के लिए  निसंदेह , नही.
हमने इंतज़ार किया  क्यूंकि याकूब परिवार और दाऊद की वजह से २५७ निर्दोष लोग मारे गए, बहुत से लोग घायल हुए, किसी ने माँ को खोया और किसी ने बेटे को. किसी परिवार का कमाने वाला चला गया  वो परिवार सड़क पर गया भूखा मरने के लिये… हमें न्याय चाहिए था इन लोगों के लिए इसीलिए हमने इंतज़ार किया।
मैं इस फैसले की जानकारी पाने की वजह से रात भर नहीं सोया, न जाने कितने लोग ऐसे होंगे जो मेरी ही तरह रात भर जागते रहे ये जान लेने के लिए कि हमारे माननीय राष्ट्रपति जी क्या फैसला लेंगे याचिका पर उसके बाद सर्वोच्च नयायालय में दुबारा से याचिका कि साब चौदह दिन और दे दो इसी जीने के लिए।  क्यूँ भाई ? क्यों दे दें ? क्या इस लिए की दुबारा से कोई याचिका देने के लिए समय मिल जायेगा न्यायपालिका का मजाक बनाने के लिए ? बड़े दुःख की बात है ये याचिकाएं लगाने वालों कभी उन परिवारों के बारे में सोचा जिनका कोई अपना मारा गया था इन धमाकों में? नहीं कभी नहीं? या फिर इनका अपना कोई इन धमाकों में मरा था ? नहीं, अगर ऐसा होता तो शायद ये ऐसा कभी नहीं  करते। सबसे बड़े दुःख की बात तो ये है कि याचिका लगाने वाला को नौसिखिया नहीं बड़े बड़े बुद्धिजीवी  थे जो केवल पैसा देखते हैं. लाखों लोग जिनका अनुसरण करते हैं ? अब इनकी मंशा क्या थी ये तो यही जाने ? एक वकील जिनका नाम आनंद ग्रोवर है उनको में उनको देख रहा बोलते हुए ये साब कह  रहे हैं  की  ये सब उन्होंने पैसे के लिए नहीं किया, तो फिर किसके लिए किया? कभी किसी गरीब के लिए तो नहीं देखा आपको आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय जाते हुए? और अगर ऐसा है तो फिर मध्य प्रदेश में तीन कैदी हैं जिन्हे तीन-तीन बार फांसी की सजा दी गयी है जो अभी इंदौर की जिला जेल में बंद हैं जिनके नाम हैं-  नेहा वर्मा, गोविंदा चौधरी, मनोज अटोदे। लड़िये इनके लिए।  नहीं आप ये नही कर सकते क्यूंकि इनके पास आपको देने के लिए पैसा नहीं है. आप तो वो लोग हो जिन्होंने एक आतंकवादी को हीरो बनाने की भरपूर कोशिश की है और शायद कुछ हद तक सफल भी हुए हो.

        और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने आज साबित करने की कोशिश कि साब आतंकवाद का तो कोई धर्म, कोई मजहब नहीं है परन्तु आतंकवादी का धर्म जरूर होता है। ये लोग वो हैं जो लाशों के ढेर पर खड़े होकर राजनीति करते हैं।  बोल रहे हैं ये सब दंगों के परिणाम स्वरुप हुआ।  इनसे कोई पूछे कि लोगों की गलती के लिए आप पूरा देश जला डालोगे वो भी पाकिस्तान की सहायता से? जो इन धमाकों में मरे उनका क्या दोष था? या १९९२ से पहले कभी कोई आतंकवादी घटना नही हुई.? कल परसों पंजाब में जो हुआ वो किसके परिणामस्वरूप हुआ? इन सब बातों का जबाव इनके पास नहीं है. इन्हे तो केवल तुष्टि करण की राजनीति से मतलब है। ओवैसी, अबु आजमी, जैसे लोग शायद ये भूल रहे हैं की वो भारत में रह रहे हो इसीलिए ये सब बोल कर खुले आम घूम रहे हो। सबसे ज्यादा सुरक्षित भी मुसलमान यही है।  सऊदी अरब, इराक , सीरिया , पाकिस्तान जैसे मुश्लिम देशों में कितने लोगो को काट दिया जाता है बिना किसी कसूर के ये तुम नहीं जानते। लगे हो एक आतंकवादी को हीरो बनाने फिर भी खुलेआम घूम रहे हो.? जिसका खाते हो उसी के साथ गद्दारी ??

   ये सब चिंतन योग्य बातें हैं, हमारे समाज के निर्माण में हमें मिलकर सहयोग करना होगा और हिन्दू, मुस्लिम, सिख , ईसाई से ऊपर जाकर काम करना होगा।  अबु आजमी और ओवैसी जैसे नेताओं का वहिष्कार करना होगा अगर नहीं किया तो आने वाले समय में ना जाने कितने याकूब मेमन हमारे समाज में पैदा होंगे।  जो कि चिंता का विषय है। हमें अपने आने वाली पीढ़ीओं को स्वच्छ, सुन्दर और सुरक्षित भारत देना है जिसमे , याकूब , ओवैसी, आजमी, प्रशांत भूषण, आनंद ग्रोवर, आदि लोगो के लिए कोई स्थान न हो. हो तो केवल भाई चारे और परस्पर प्रेम का माहौल।

भारत माता की जय।

हरेन्द्र सिंह चौधरी

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