प्रसिद्ध कवि रहीम को उनके ज्ञानवर्धक और रोचक दोहों के लिए जाना जाता है। उनका पूरा नाम अबदुर्ररहीम खानखाना था। उनका जन्म संवत् 1613 ई. सन् 1553 में बैरम खां के घर लाहौर में हुआ था। संयोग से उस समय सम्राट हुमायूं सिकंदर सूरी का आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सैन्य के साथ लाहौर में मौजूद थे। बैरम खां के घर पुत्र के जन्म होने की ख़बर सुनकर वे स्वयं वहां गए और उस बच्चे का नाम रहीम रखा।
बैरम खां की मौत के बाद रहीम का पालन-पोषण बादशाह अकबर की निगेबानी में हुआ। रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि और विद्वान थे। रहीम सांप्रदायिक सद्भाव रखने वाले थे। उन्होंने ने ऐसे अनेक दोहे लिखे हैं, जिनमें जीवन के गूढ़ रहस्य छुपे हैं। आइए जानते हैं रहीम के कुछ ऐसे ही दोहों को जो ज्ञानवर्धक होने के साथ ही रोचक भी हैं।
खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
- सात बातें ऐसी हैं जो किसी की लाख कोशिशों के बावजूद भी गुप्त नहीं रह सकती। ये सात बातें हैं खैर मतलब सेहत, खून मतलब कत्ल, खांसी, खुशी, बैर यानी दुश्मनी, प्रीति यानी प्रेम और मदपान मतलब शराब का नशा। इन बातों को आप भले ही अपनी बातों में जाहिर ना करें, कभी इनके बारे में बात ना करें, लेकिन ये अचानक जाहिर हो जाती हैं। हमारी बॉडी लैंग्वेज, हावभाव, व्यवहार और हमारे तौर-तरीकों से ये बातें अपने आप दुनिया को पता चल जाती हैं।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
- वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
- दुख में सभी लोग याद करते हैं, सुख में कोई नहीं। यदि सुख में भी याद करते तो दुख होता ही नहीं।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
- वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
- दुख में सभी लोग याद करते हैं, सुख में कोई नहीं। यदि सुख में भी याद करते तो दुख होता ही नहीं।
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
- दीपक के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं अंधेरा होता जाता है।
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराए।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाए॥
- ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फर्जी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाए॥
- ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फर्जी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
- जब बात बिगड़ जाती है तो किसी के लाख कोशिश करने पर भी बनती नहीं है। उसी तरह जैसे कि दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता।
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
- ज्यों ही कोई किसी से कुछ मांगता है त्यों ही आबरू, आदर और आंख से प्रेम चला जाता है। इसलिए सम्मान बनाए रखना है तो कभी किसी से कुछ न मांगे।
खीरा सिर ते काटिए, मलियत नमक लगाए।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाए॥
- खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगाना चाहिए। यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाए॥
- खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगाना चाहिए। यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिए, वे साहन के साह॥
- जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं, क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
- जो गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।
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