‘सेमल वृक्ष कितना बड़ा क्यों न हो, उससे हाथी नहीं बांधा जा सकता।’ - नीतिशास्त्र ‘सरकार का सत्तावृक्ष कितने ही बड़े बहुमत से क्यों न हो, उसे नागरिकों का हित नहीं बांध सकता।’ - राजनीतिशास्त्र हम वर्षों से यह झूठ सुनते आ रहे हैं। सहन करते आ रहे हैं। मानते जा रहे हैं। किन्तु अब नहीं। क्योंकि, पहले हम विवश थे। लागत से भी कम मूल्य पर खरीदने वाले, किसी भी तरह की शिकायत नहीं कर सकते। तब हमें पेट्रोल हो या डीज़ल, सब कुछ कम कीमत पर मिलता था - यानी मूल कीमत का बोझ सरकार उठाती थी। जिसे सब्सिडी कहते हैं। यानी ‘राज सहायता’। बड़ा सामंती सा नाम! अब नहीं। क्योंकि अब न तो पेट्रोल पर राज सहायता है, न ही डीज़ल पर। तो हम साधारण नागरिकों का पूर्ण अधिकार है कि पूर्ण सत्य जानें। ताकि असत्य सामने आ सके। पहला अर्धसत्य है - कि सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि हमारे यहां सबकुछ अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल (क्रूड) की कीमतों से तय होता है। जो अचानक बढ़कर 80 डॉलर प्रति बैरल तक चली गई। पूर्ण सत्य यह है कि सरकार ही सबकुछ कर सकती है। पलक झपकते सरकार कीमतें कम कर सकती है। सर्वाधिक आसान उपाय है - सेंट्रल एक्सा...